यह हमारी कमी हें की हम तप तप कर जल गये पर दुनिया को हमारा जलना भी रास न आया क्योकि उन्हें जलना देखना स्वीकार
नही
वो राख देखना चाहते हैं जो निर्जीव हो हवा के झोके से उड़ जाये और उसका अस्तित्व खत्म हो जाये क्यों शायद हम नासूर हें अपनों के लिए यह हमारा अँधा मोह हैं जो हमे ही ले डूबा हमे अपनों ने ही धुत्कार तिरस्कार अपमान आंसू
आग मैं हम जल रहें हैं और मोह किये जा रहें हैं पर हमारे बारे में कोई नही सोचता सभी अपनी शर्तो पर रखना चाहते हैं अगर उनकी
शर्तो के मुताबिक रहो तो ठीक वरना आपसे रिश्ता तोड़ देते हैं क्योकि उन्हें हमारी आवश्यकता नही हैं
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