Thursday 14 February 2013

टूटता तारा







टूटता तारा 

मैं वो आंसमा से टुटा तारा हूँ जो आसमान से टूट जाने के बाद अस्तित्व हीन हो जाता हैं जब तक आसंमा मे रहता हें तब तक वह तारा तारामंडल की गिनती में आता हें जेसे की तारा टूटता हें तो बहुत से लोग टूटते तारे को देखकर मन्नत मांगते हें बस उसके बाद वो तारा अस्तित्व हीन हो जाता हैं 
व्यक्ति भी परिवार से जुड़ा रहें तब तक ठीक हैं परिवार व समाज से अलग होने के बाद वो व्यक्ति अस्तित्व हीन हो जाता हैं और फिर नारी अगर परिवार और समाज से अलग रहती तो स्थित और भी गम्भीर हो जाती चाहे वो नारी संघर्षशील हो अपनों की सताई हो पति से पीड़ित हो अगर उस नारी ने अपना स्थान अलग बनाया भी तो भी समाज उसे हीन द्रष्टि से देखता हैं पुरुष प्रधान समाज में पतिपत्नी को साथ देखा जाता हें वही उनका सम्मान बड जाता हें भले ही नारी ने अपने बच्चो का भरन पोषण कर उन्हें योग्य बनाया भी तो क्या ? क्या फर्क पड़ता हें ये तो औरत की जिम्मेदारी हैं पर क्या पुरुष की नही ?

पुरुष को कभी भी घ्रणा की द्रष्टि से नही देखा जाता दोष नारी में ही ढूंढ़ते हें ये समाज ये परिवार सोच कर  दिल भर आता हें पर क्या टूटते तारे न जमीं  पर गिरते हें ना आंसमा में रहते हें वो तो सिर्फ लुप्त हों जाते हैं। 

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