Monday 29 October 2012

उत्पीडन घरेलू हिंसा क्या ये कानून सिर्फ महिलाओ के लिए

उत्पीडन घरेलू हिंसा क्या ये कानून सिर्फ महिलाओ के लिए 
उत्पीडन घरेलू हिंसा क्या ये कानून सिर्फ महिलाओ के  लिएही हैं या परिवार मैं रहने वाले हर व्यक्ति के  लिए अगर हैं तो महिलाये ही क्यों घरेलू हिंसा का मुकदमा दायर करती हैं पुरुष क्यों नही या परिवार का वो व्यक्ति जो परिवार के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पीड़ित हैं 
वो क्यों नही अपने आप को न्याय दिला पा रहा हैं और अगर ये कानून सिर्फ महिलाओ के ही लिए हैं तो आखिर क्यों पुरषों के लिए क्यों नही या फिर परिवार के अन्य लोगो के लिए क्यों नही ये जरूरी नहीं के हर महिला पीड़ित हो व हर पुरुष अत्याचारी हो ,
जहा इस देश मैं राम और सीता जेसे आदर्श पति पत्नी हुए।
राम के वनवास जाने पर सीता जो मिथला की राजकुमारी होने के बाद भी अपने पति राम के साथ वन मैं संघर्ष मई जीवन जीना स्वीकार किया 
वही शिव  पार्वती भी आदर्श पति  पत्नी थे पार्वती जी स्वयम राजा हिमवान की पुत्री होने के बावजूद शिव से विवाह के पश्चात अपने पति शिव के तप मैं लीन  रहने  वाले व् सारी  सुख सुविधाओ का आभाव होने पर  दाम्पत्य का  आदर्श हैं   और वही  रिश्ता पूजनीय हैं 
विष्णु व् लक्ष्मी सारे सुख वैभव मगर पत्नी लक्ष्मी देवी विष्णु के चरण दबाये दिखती हैं ये रिश्ता भी सम्मानजनक और पूजनीय हैं 
पर आज ये क्या हो रहा हैं  देखने मैं आता हैं व्यक्ति जरा सी  भी इच्छा पूर्ति नही होने पर वो स्त्री हो या पुरष तानाशाही मारपीट करता हैं 
अबी तक तो महिलाये ही पीड़ित दिखती थी पति या परिवार से मगर अब तो कई महिलाये भी इसी राक्षस  प्रवति की हैं 

राक्षस  प्रवति  की महिलाये भी इस धरती पर निवास कर रही हैं व  अपने पति के साथ मारपिट  हिंसात्मक झगड़ा परिवार के अन्य  सदस्यों के साथ कटु व्यवहार करती हैं लगता हैं की जेसे वो नारी नही नारी के नाम पर कलंक हैं जिस देश की नारिया समर्पण त्याग ममता की मूर्ति कहलाती हो लगता हैं वहा इस रूप मैं कोई अपवाद पैदा हो गया 
ऐसी नारिया सिर्फ  राक्षस वंश की हैं या जिन्होंने नारी जाती का अपमान किया हैं पर हम क्या कर सकते हैं भेष के सामने बीन बजाना सब कुछ बेकार वही कानून यदि  ऐसी नारियो की रक्षा करेगा तो बेचारा पुरुष जो कमाता  हो समाज मैं सम्मान  से रहता हो सारी सुख सुविधा देता हो अगर उस पुरुष  के साथ भी एसा होता हैं तो फिर इसे समाज मैं रहने वाले परिवारों का अंत क्या होगा उन महिलाओ की वजह से हकीकत मैं जो महिलाये  दुखी व  पीड़ित  हैं वो इस कानून के हक के फायदे से वंचित हैं व उनका  जीवन नारकीय हैं क्योंकी वो समाज व् ममता की बेडियो मैं बंदी हुई सिर्फ दुःख सहन करने के आलावा कुछ नही कर सकती 
और उनके मुकदमे सालो तक लम्बित पड़े रहते हैं .

2 comments:

  1. आप का लेख वास्तविकता पर आधारित हैं आज समाज मैं एसे उदहारण भी देखने को मिलते हैं जेसा की आप ने अपने लेख मैं वर्णन किया हैं उम्मीद करता हूँ की समाज सकारात्मक परिवर्तन की और अग्रसर हो और सभी परिवार सुख से रहें सुखी दाम्पत्य जीवन सुखी परिवार और सुखी समाज का मूल हैं.

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  2. सार्थक आलेख, बहुत कम ही बार मैंने एक समुचित नजरिया रखने वाला आलेख देखा है। बधाई स्वीकार करें।

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