Saturday 19 October 2013

नारी अभिस्राप है


नारी अभिस्राप है इस सृष्टी पर जीवन उसका बेहाल है इस सृष्टी पर 
       रित यही है इस    दुनिया की दे दो समन्दर तुम दर्द और आंसुओ का 

अखियाँ फिर भी अपनेपन की खोज में ढूंड रही है अपनों को अपने में 
       भीगी पलके बता रही है तुम मान जाओ यू न सताओ आखिर क्या कसूर हे मेरा ?

श्राप भगवान ने नारी तुझे बनाया नारी ने सोचा था पूजा होगी सम्मान मिलेगा 
       पर पता नही था के यहाँ दर्द और आंसुओ का समन्दर मिलेगा 

हे भगवान अगले जन्मो में पत्थर बना देना नीर बना देना पर नारी बना के आखों मैं नीर ना देना