Wednesday 28 March 2012

वेदना


















वेदना 


हम इतने बेबस हो सकते थे हमे भी नही पता था पत्थरों से सर हमने फोड़ा आखिर आपने हमे कही का नही छोड़ा.
रोता हुआ हमे छोड़ कर मुस्कुराकर चल दिए ए मेरे अनजाने साए हम हरपल साथ तेरा चाहते आप जेसा चाहो मैं रहू वेसे बनके बस इतना चाहती हूँ की  पिया आप रहो मेरे बन के
पर ये क्या आप के चरणों की धुल को हमने सर पर लगा लिया हमने आपको बहुत कुछ मान लिया पर आप ने ही हमे धुल मैं मिला दिया.

Tuesday 27 March 2012

अन्याय

अन्याय 










कुछ समय पहले किरण बेदी का सीरियल चल रहा था 


"आप की कचहरी " किरण बेदी  भारतीय पुलिस सेवा की प्रथम महिला आई पी एस अधिकारी एवं महिलाओ की आदर्श यहाँ  तक की पुरषों को भी लोहा मनवा चुकी एक सशक्त महिला हैं (इनके कार्यकाल मैं केदियो के सुधार हेतु कई कार्यक्रम चलाये गये जिससे कई केदी लाभान्वित हुए)
सच हैं की हर महिला को किरण बेदी की तरह ही बनना चाहिए मगर उस महिला के पीछे सदेव  ऐसे माता पिता का हाथ होना स्वभाविक हैं जो उसे उतम शिक्षा दे, दूसरा अच्छा  पति का जो सहयोग दे.
क्या किरण बेदी के साथ इन्साफ हुआ नही क्योकि पुरुष प्रधान समाज मैं हमेसा हर रूप मैं औरत का अस्तित्व ही मिटाया जाता हैं किरण बेदी का प्रमोशन होना और प्रतिभा प्रतिभा पाटिल का राष्ट्रपति बनना ये दोनों बाते एक ही दिन होनी थी मगर किरन बेदी हर तरह से योग्य होते हुए भी और सीनियर होते हुए भी उनका प्रमोशन नही होना और उनसे जूनियर किसी पुरुष का प्रमोशन हो जाना 
(इस घटना के बाद किरण बेदी ने आपने पद से इस्तीफा दे दिया)
 ये हर महिला के लिए एक दुखद समाचार था दूसरी तरफ श्रीमती प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बनती हैं यह हैं राजनीति अखबार मैं बहुत बड़ी खबर मगर फिर भी नाही तो सरकार के कान पर जू रेंगती हैं और न ही किसी संस्था का विरोध.


ना ही महिलाओ की कोई प्रतिक्रिया देखने मैं आई ये हैं निक्रष्ट  समाज फिर भी जिसके लिए किरण बेदी आज सामाजिक बुराई या संस्था की तरफ से केस ले रही हैं न्याय की कोशिस कर रही हैं उस निक्रष्ट  समाज के लिए जिस समाज ने एक आदर्श महिला को अपने हक से वंचित कर दिया वही समाज किरन बेदी के सामने हाथ फेलाए खड़ा हैं हमे शर्म आना चाहिए इस पुरुष प्रधान देश मैं अगर महिला एक हो जाती अगर महिला राष्ट्रपति इस बारे मैं कुछ सोचती तो शायद हमारी आदर्श किरन बेदी हमारी नई पीडी को और नई पहचान देती मगर हमारी राष्ट्रपति को अपने राष्ट्रपति बनने  की ख़ुशी मैं एक आदर्श महिला संघर्षी महिला का हक दर्द व्  पीड़ा समझ  मैं नही आया वो तो फुल मालाओ मैं इतनी लद गई की बेदी की दर्द पीड़ा को अनदेखा कर दिया यह हैं समाज की व्यवस्था .
. एक महिला का मोन रहना दूसरी महिला पर अत्याचार 
. समाज जिम्मेदार हैं योग्य व्यक्ति को हक नहीं दिलाने  का 
  

Sunday 25 March 2012

मोक्ष



मोक्ष 
अकेले सभी आते हैं अकेले सभी जाते हैं पर सारी जिंदगी अकेले रहता नहीं कोई.
इंसानों के बीच रहतें हुए भी अकेले हैं क्योकि हर व्यक्ति को सिर्फ अपनी ही पड़ी है वो लोग कितने खुशकिस्मत होते हैं जिन्हें हमदर्द मिलता हैं दर्द बटता है या फिर प्यार करता हैं आखिर हमने ऐसा कौनसा गुनाह   किया की हमे कोई समझने को तेयार नही हम कोशिश  करते हैं हम से खता न हो फिर भी खता हो न हो हम सजा भुगतने को तेयार रहतें हैं सिर्फ इस उम्मीद पर की शायद वो इस बात पर हमे अपना समझे पर नहीं चोट फिर हमने खाई किसी को भी नज़र नहीं आई क्योंकी हम अकेले है और अकेले रहेंगे सारी जिंदगी दुनिया रूपी श्मसान मैं आत्मा की तरह भटक रहें हैं कब मोक्ष मिले या अत्रप्त आत्मा को दुबारा जन्म ले और फिर मृत दुनिया मैं ज़ीने की कोशिस करे  

छाले


छाले
दिल मैं दर्द के छाले आखों मैं सूखे हुए आंसू  के सहारे वक्त काटेगें 
होठों पर नकली मुस्कुराहट चेहरे पर द्रढ़ता लिए रह सकते हैं 
कहते हैं न वक्त इंसान को मजबूत बना देता हैं हकीक़त मैं वक्त इंसान को तोड़ भी देता हैं, टूट कर बिखरने से अच्छा हैं सम्भल जाओ लड़खड़ाकर चलने से अच्छा हैं कर्म ( मेहनत) रूपी बैसाखी अपना लो.


मेहनत कर के आदमी धनवान बन सकता हैं शिक्षा पाकर आदमी बुद्धिमान बन सकता हैं पर एक अनमोल चीज़ ऐसी हैं जिसके लिए आदमी अपना सब कुछ खो देता हैं पर फिर भी वो उसे नहीं मिलता वो हैं प्यार और अपनापन.

निराशा से आशा की और



निराशा से आशा की और 
आदमी को आदमी समझा करो जानवर समझ कर दुत्कारा मत करो चाहें वो कोई भी हो स्त्री या पुरुष हें तो इंसान ,इंसान समझ कर बात किया करो.
औरो के लिए नही अपनों के लिए जीने की कोशिस करो बहुत जीलीये औरो के लिए अपने लिए भी जी कर देखो इंसान की ज़िन्दगी इस जहां मैं सिर्फ एक बार मिलती हें इसे मिटने मत दो जब तक हें जिन्दगी कोशिश जीने की करो इस जहाँ में मेहनत कर के अपना स्थान बना सकता हें क्या फर्क पड़ता हें किसी को आप की जरूरत नहीं हें .

जीवन


जीवन बहुमूल्य है उसके लिए जो इसका मूल्य जानता है 
जिन्दगी एक ऐसा चौराहा है
जिसे इंसान जिस तरफ मोड़ना चाहे मोड़ सकता है 
यह उसके ऊपर निर्भर है कि वो कौनसा रास्ता चुने अच्छा या बुरा 
अच्छाई ऊचाइयों  पर  पहुचाती  है 
बुराई इंसान को दलदल में गिराती है  

Saturday 24 March 2012

अंतर



अंतर -


इंसान इतना मजबूर और बेबस आखिर क्यों हो जाता है ? जो चीज मिलना असंभव है उसे पाने की नाकाम हसरत लिए तड़प उठता है अंत तक कोशिश पाने की ही करता है मगर भाग्य में चीज नहीं है वह मिलना बहुत मुश्किल है भाग्य से लड़ते हुए हम बचपन से जवान हो गए आखिर कुछ भी तो नहीं पाया सिवाय अपमान और तिरस्कार के किसे अपना समझे यहाँ कोई अपना नहीं है सब एक और दर्द देने वाले है इस दुनिया में हम जानवर की तरह जी रहे है सिर्फ फर्क इतना है कि जानवर - जानवर का हमदर्द हो जाता है, यहाँ इंसान दिल में खंजर छुपाये दर्द बांटने की बजाये एक और दर्द दे देते है कौन कहता है कि जानवर की तरह नहीं जीना चाहिए क्योंकि हां हमें हकीकत में जानवर की तरह ही जीना चाहिए क्योंकि एक पक्षी अगर मर जाता है तो हजारो पक्षी उसके इर्द -गिर्द जमा हो जाते है एक पशु अगर घायल हो जाता है तो उसके हमदर्द साथी उसे सहलाते है, पुचकारते है यह एक जानवर ही कर सकता है जिसे कोई स्वार्थ नहीं, निःस्वार्थ सेवा इंसान में यह चीज़ कहाँ हर जगह कुछ न कुछ लालच उसेक बावजूद भी ये सब कुछ नहीं मिल पता इस खुबसूरत जहाँ में सबकुछ खुबसूरत है सिर्फ इंसान के सिवाय अगर इंसान लालच, अहम् छोड़ दे इंसान को इंसान समझे उसकी भावनाएँ समझे उसकी मूक भाषा (फेस रीडिंग)  को पहचाने उसको प्यार करे तो सब कुछ खुबसूरत है मगर इन सब के लिए इंसान को जानवर बनना होगा. 

रिश्ते


रिश्ते 
व्यक्ति उम्मीद करता हैं की सामने वाला उसको समझे मगर उसके लिए एक इंसान को दुसरे इंसान की भावना में खो जाना होगा पर यह असंभव तब है 
जब पुरुष सीता जैसे पत्नी चाहे खुद रावण का रोल निभाए क्योंकि सीता जैसी पत्नी के लिए पहले राम बनना होगा, भाई लक्ष्मण-भरत जैसा चाहे खुद बाली बन जाये, भरत-लक्ष्मण जैसे भाई पाने के लिए खुद को राम बनना होगा दोस्त कृष्ण-सुदामा जैसा चाहे मगर इसके लिए खुद को कृष्ण बनना होगा नहीं तो द्रुपत और द्रोणाचार्य की भाति मित्रता का अंत होगा.
अच्छे माता पिता का आशीर्वाद  के लिए आपको श्रवण कुमार बनना होगा वरना कंस की तरह विनाश को प्राप्त हो जाना तय हैं.
बहन देवकी जेसी चाहे और खुद कंस का रोल निभाए, इसके लिए आप को द्रोपती और कृष्ण के रिश्ते को निभाना होगा,

Friday 23 March 2012

माँ का स्नेह




नववर्ष आया संग नवरात्रि व पर्व माँ दुर्गा संग लाया 


यह सच है की हम माँ दुर्गा की पूजा करते हैं अखंड ज्योति भी जलाते हैं, जागरण भी करते हैं
हम सब व्रत करते हैं आखिर हम माँ से क्या मांगते है 
हर व्यक्ति अपनी इच्छाएँ माँ के सामने रखता है और मुझे लगता है माँ सबके सपने साकार करती है देर सवेर पर क्या कोई ऐसा भी है जो सिर्फ निःस्वार्थ माँ की सेवा पूजा करता,  अगर है तब तो बिना मांगे ही माँ सबकुछ दे देती हैं 
मांगने पर तो माँगा वही मिलता कहते है 
       
                "बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न नीर"


सच ही तो है माँ अपने बच्चों की सांसों, धड़कन और आँखों से पहचान लेती हैं फिर क्या जरुरत है माँ से कुछ मांगने की माँ शब्द प्यार, स्नेह और आशीर्वाद से भरा होता है
माँ कभी नहीं चाहती की मेरे बच्चें दुखी हो पर गलती पर सजा तो दे सकती है कुछ समय के लिए मगर माँ का स्नेह कभी ख़त्म नहीं होता
माँ की सेवा, पूजा निःस्वार्थ मन से करें न की लालच से क्योंकि हम खुद इंसान लालची व्यक्ति को बर्दाशत नहीं करते 

नववर्ष प्रतिपदा






नूतन वर्ष नववर्ष खुशियाँ अपार लाया नवरात्रि  
नवदुर्गा माँ आशीर्वाद संग लायी आज माँ अपने बच्चों के घर आई 
खुशियाँ, उत्साह अपार हमारे द्वार लायी नतमस्तक चरणवंदन है 
हे माँ तेरे बच्चों की तरफ से तुझे अभिनंदन है 
माँ हम क्या माँगे तुझसे हम तो तुच्छ प्राणी है 
दो यह वरदान माँ गोद तुम्हारी चाहिये
सर पर हो हाथ तुम्हारा बस हमें हमेशा माँ तुम्हारा साथ चाहिये  

Thursday 22 March 2012

काँटो भरा जीवन





हर किसी के जीवन में फूल नहीं खिलते, जीवन ही बेरंग हो तो रंग नहीं मिलते 
माना कि हम मोहताज नहीं प्यार के पर क्यों दिल तड़प उठता है, पर क्यों बैचेनी होती है उसे पाने की जिसे पाना नामुमकिन है 


काँटो भरा जीवन मेरा पथरीली रांहे हैं इंसान भला क्या जाने इसे पाने का सुख या दुःख सब साथ छोड़ देते हैं वक़्त बदल जाने पर यही तो सच्चा साथी हैं जो हर पल साथ रहता है वो है दर्द दर्द दर्द 

नारी का अस्तित्व



हे नारी तेरा रूप अस्तित्व कहाँ खो गया तेरा सपना कहीं दफ्न हो गया


(नारी) तूने तो सबको किनारे लगाया था तुझे मझधार में कौन छोड़ गया
वो हँसता-मुस्कुराता चेहरा, चंचल निगाहें कहाँ खो गयी 
क्यों बेजान चेहरा पत्थर सी बन गयी हो 


हे नारी तेरा रूप अस्तित्व कहाँ खो गया तेरा सपना कहीं दफ्न हो गया


जिसको तूने सहारा दिया वो तुझे तोड़ कर चला गया 
तेरी अग्निपरीक्षा बहुत हो चुकी क्यों घबरा जाती हो,
हिम्मत हार जाती हो और क्यों आंशु बहती हो 


कोई शख्श तुम्हारे आंशु नहीं पोंछेगा इस तरह तो तुम मिट जाओगी और तुम्हारी पहचान ख़त्म हो जाएगी 


अपना रास्ता खुद बनाओ मंजिल तुम्हे नज़र आयगे इस मृत दुनिया को मत देखो जिसने तुम्हें छला हैं, जिसने तुम्हें तोड़ा है 


तुम माँ मरियम बन कर दिखाओ, सीता और अनुसुइया बन कर दिखाओ 
वक़्त आने पर झांसी की रानी दुर्गा बन कर दिखाओ 


हे नारी तेरा रूप अस्तित्व कहाँ खो गया तेरा सपना कहीं दफ्न हो गया











ज्योति

 


लाख दिये के तले अँधेरा हो मगर औरों को रोशन कर देता है 
असीम ज्योति है उसके पास मगर खुद अंधियारे में रहता है 

जब दिये कि जीवन ज्योति बुझ जाती है 
तो वो ही उन्हीं दुनिया वालों के लिए महत्वहीन हो जाता है 

और तो और उसका साया भी उसका साथ छोड़ देता है 

मगर हमें प्रकाशवान दिये से अपनी तुलना करनी चाहिए 
न कि उस दिये को महत्वहीन समझ कर नज़रअंदाज़ करना चाहिए 

महत्वहीन हो जाने के बाद भी उसकी महत्ता खत्म नहीं हो जाती