Sunday 1 April 2012

पड़ाव

पड़ाव 
उम्र के हर पड़ाव मैं ठहराव  क्यों आ जाता हैं उम्र जाने कब हाथ  से इनती निकल गई की पता ही नही चला हर चीज़ अपनी जगह से बदली   नजर आती हैं बस हम अपनी जगह पर खड़े हैं दुनिया हमे बदली नजर आती हैं जिंदगी इतने करीब हो गई पता ही नही चला हमे क्या खोया और क्या पाया यह एहसास तब हुआ जब कुछ बाकी नही रहा इंसान अपने आप को क्यों उलझाये रहता हैं एक पल अपने बारे मैं क्यों नही सोचता. 

आस 
हम गम पीये जाते हैं और  ख़ुशी की आस  करते हैं, हम मरे जाते हैं पर  जिंदगी की आस  करते हैं.
दिल को टूटते हुए हमने देखा हैं फिर भी जिन्दादिल्ली  की बात करते हैं.
काँटों का दर्द सहा  हमने फिर भी दूर से फूलो की आस करते हैं.
अपनों ने ही धुतकारा हैं हमे मगर हम उन्हें अपना  बनाने की बात करते हैं.
भगवान को हमने बहुत पूजा पर दुनिया ने हमे पत्थर बना दिया मगर फिर भी  भगवान से हम दुआ की बात करते हैं.
आसू बहुत बहाए हमने हम मुस्कुराने की हैं बात करते हैं टूट कर बिखर गये हम मगर हम सम्भलने की बात करते .