पड़ाव
उम्र के हर पड़ाव मैं ठहराव क्यों आ जाता हैं उम्र जाने कब हाथ से इनती निकल गई की पता ही नही चला हर चीज़ अपनी जगह से बदली नजर आती हैं बस हम अपनी जगह पर खड़े हैं दुनिया हमे बदली नजर आती हैं जिंदगी इतने करीब हो गई पता ही नही चला हमे क्या खोया और क्या पाया यह एहसास तब हुआ जब कुछ बाकी नही रहा इंसान अपने आप को क्यों उलझाये रहता हैं एक पल अपने बारे मैं क्यों नही सोचता.
उम्र के हर पड़ाव मैं ठहराव क्यों आ जाता हैं उम्र जाने कब हाथ से इनती निकल गई की पता ही नही चला हर चीज़ अपनी जगह से बदली नजर आती हैं बस हम अपनी जगह पर खड़े हैं दुनिया हमे बदली नजर आती हैं जिंदगी इतने करीब हो गई पता ही नही चला हमे क्या खोया और क्या पाया यह एहसास तब हुआ जब कुछ बाकी नही रहा इंसान अपने आप को क्यों उलझाये रहता हैं एक पल अपने बारे मैं क्यों नही सोचता.