Tuesday 25 December 2012

जीवन का आखरी सफर

जीवन का आखरी सफर 

लडखडाते कदमो को सम्भल कर चलते हमने देखा हैं धुंधली आँखों से अपनों का इंतज़ार करते देखा हैं।
याद उनको वो पल आता जब कभी वो जंवा थे दौड़ कर नन्ने नन्ने कदमो से चलते अपनी आँखों के तारो को ऊँगली थामे मन्दिर दर्शन करने ले जाते कभी टॉफी दिलाते कभी दूध जलेबी कभी मिठाई खिलाते पर ये क्या आज उनका  इन्तजार करते हमने उन आँखों को देखा हैं.
थकी हुई आँखों  से वो रौशनी ढूंड रहें हैं लडखडाते कदमो से वो सहारा ढूंड रहें हैं अपनों का सहारा मत ढूढीये वो टूट जायेगा अपने आप का सहारा ढूढीये तो वक्त बदल जायेगा क्योकि तारो को टूटते हमने देखा हैं लडखडाते कदमो को सम्भल कर चलते हमने देखा हैं वक्त बदल जाता हैं मोसम बदल जाता हैं पर कहते हैं खून के रिश्ते नही बदल ते पर हमने रिश्तो को बदलते देखा हैं चेहरे पर झुरिया लिए अपनों का इंतज़ार आंसा भरी आँखों को बहेते हमने देखा हैं.
बेबस होकर जीवन के आंखरी पलो को कांटते हमने देखा हैं अपनों का इंतज़ार करते हमने देखा हैं।


Thursday 20 December 2012

भ्रस्ताचार


भ्रस्ताचार 

महंगाई यू मार जाएगी कभी सोचा न था 
जिस देश को सोने की चिड़िया कहते थे पहले 
पहले फिरंगीयो ने लुटा फिर भ्रस्त्ताचारियो ने लुटा कभी सोचा न था काला धन काला बजारी सरेआम कर रहें है और गोदामों मैं अनाज यू ही सड रहें हैं 
गरीब जनता भूखे मर रही हैं।
महंगाई यू मार जाएगी कभी सोचा न था .
याद हमे आता हैं वो गुलामी का वक्त जब  देश को आजाद कराने हमारे वीर शहीद हूए हँसते हँसते फाँसी के फंदे पर झूले और हमे कर गये आजाद .
पर यह क्या काला बजारी भ्रस्त्ताचारियो ने फिर इस देश को गुलाम  बनाने की शायद ले ली हे शपथ।
वो अपना गोदाम भर रहें हैं औरो के मुहं का निवाला छीन कर वो शान से जी रहें हैं। 
कुछ देश भक्तो का धडकता दिल दर्द से कहरा रहा और अन्ना हजारे लड़खडाते कदमों से देश भक्ती का जज्बा लिए फिर लड़ने को तेयार हैं। 
हाय हमारा दुर्भाग्य की भ्रस्त्ताचारि कर रहें 'ऐश और बाबा जी पहन लंगोटी लड़ रहें हैं केस'। 
धरना दे रहें लाठी खा रहें साथ ही जेल जा रहें इस देश को बचाने के लिए क्या कर रहें शर्म शायद खत्म हो गयी भ्रस्त्ताचारियो की दे दो इन्हें देश निकाला या दे दो फांसी  ....

Wednesday 19 December 2012

पहचान


पहचान -
हमें समझ मैं यह नही आता की यह समाज व्यक्ति की पहचान किस रूप मैं   देखकर उसके व्यक्तिगत जीवन का पता चला पता हैं। 
हकीकत में  जो व्यक्ति दीखता हैं वो होता नही हैं . जो होता हैं वो दीखता नही हें ठीक उसी प्रकार जेसे रेगिस्तान मैं चिलमिलाती धुप दूर से ऐसी दिखाई पडती हैं जेसे कोई नदिया नीर या झील हो मगर कोसो दूर से पास आने पर ठीक विपरीत न नदिया न नीर न झील और आगे देखने पर फिर वही नजारा देखने मे  आता हैं उसी तरह व्यक्ति के बनावटी जीवन को देखकर यह पता लगा पाना कठिन हैं की वह क्या हैं '
उसका जीवन बाहरी व् अंदरूनी दोनों ठीक विपरीत होते हैं व्यक्ति जिस समाज मे रहता हैं उस समाज के हिसाब से उसका अपना स्तर बनाये रखने और पारिवारिक प्रस्टभूमि और संस्कारो को ध्यान मे रखते हुए व्यक्ति कितनी ही परेशानियों मे क्यों न  हो वो समाज मे अपने आप को उसी स्तर का दिखाना पसंद करेगा जिसमे समाज मैं उसकी प्रतिष्ठा बनी हुई हैं व्यक्ति कही तो अपने आप को साबित करेगा व्यक्ति विपदाओ से निपट सकता हें संकटों  से जूझ सकता है अपने आप के दुखो से घबरा कर और समय से लड़कर सफल हो सकता हैं पर समाज में एक बार अपना स्तर व पारिवारिक  प्रस्टभूमि को नकार कर जी नहीं सकता क्योकि व्यक्ति हर संघर्शो से अकेले लड़ सकता हैं पर परिवार और समाज से जीत नहीं सकता कहने का मतलब ये की व्यक्ति का दोहरा जीवन बाहरी जीवन व् निजी जीवन अपने आप से व अपनों से वक्त परिवार से व समाज आर्थिक और मानसिक इस सब से  हट कर बाहरी जीवन मैं अपने आप को साबित करता हैं