Tuesday 25 December 2012

जीवन का आखरी सफर

जीवन का आखरी सफर 

लडखडाते कदमो को सम्भल कर चलते हमने देखा हैं धुंधली आँखों से अपनों का इंतज़ार करते देखा हैं।
याद उनको वो पल आता जब कभी वो जंवा थे दौड़ कर नन्ने नन्ने कदमो से चलते अपनी आँखों के तारो को ऊँगली थामे मन्दिर दर्शन करने ले जाते कभी टॉफी दिलाते कभी दूध जलेबी कभी मिठाई खिलाते पर ये क्या आज उनका  इन्तजार करते हमने उन आँखों को देखा हैं.
थकी हुई आँखों  से वो रौशनी ढूंड रहें हैं लडखडाते कदमो से वो सहारा ढूंड रहें हैं अपनों का सहारा मत ढूढीये वो टूट जायेगा अपने आप का सहारा ढूढीये तो वक्त बदल जायेगा क्योकि तारो को टूटते हमने देखा हैं लडखडाते कदमो को सम्भल कर चलते हमने देखा हैं वक्त बदल जाता हैं मोसम बदल जाता हैं पर कहते हैं खून के रिश्ते नही बदल ते पर हमने रिश्तो को बदलते देखा हैं चेहरे पर झुरिया लिए अपनों का इंतज़ार आंसा भरी आँखों को बहेते हमने देखा हैं.
बेबस होकर जीवन के आंखरी पलो को कांटते हमने देखा हैं अपनों का इंतज़ार करते हमने देखा हैं।


Thursday 20 December 2012

भ्रस्ताचार


भ्रस्ताचार 

महंगाई यू मार जाएगी कभी सोचा न था 
जिस देश को सोने की चिड़िया कहते थे पहले 
पहले फिरंगीयो ने लुटा फिर भ्रस्त्ताचारियो ने लुटा कभी सोचा न था काला धन काला बजारी सरेआम कर रहें है और गोदामों मैं अनाज यू ही सड रहें हैं 
गरीब जनता भूखे मर रही हैं।
महंगाई यू मार जाएगी कभी सोचा न था .
याद हमे आता हैं वो गुलामी का वक्त जब  देश को आजाद कराने हमारे वीर शहीद हूए हँसते हँसते फाँसी के फंदे पर झूले और हमे कर गये आजाद .
पर यह क्या काला बजारी भ्रस्त्ताचारियो ने फिर इस देश को गुलाम  बनाने की शायद ले ली हे शपथ।
वो अपना गोदाम भर रहें हैं औरो के मुहं का निवाला छीन कर वो शान से जी रहें हैं। 
कुछ देश भक्तो का धडकता दिल दर्द से कहरा रहा और अन्ना हजारे लड़खडाते कदमों से देश भक्ती का जज्बा लिए फिर लड़ने को तेयार हैं। 
हाय हमारा दुर्भाग्य की भ्रस्त्ताचारि कर रहें 'ऐश और बाबा जी पहन लंगोटी लड़ रहें हैं केस'। 
धरना दे रहें लाठी खा रहें साथ ही जेल जा रहें इस देश को बचाने के लिए क्या कर रहें शर्म शायद खत्म हो गयी भ्रस्त्ताचारियो की दे दो इन्हें देश निकाला या दे दो फांसी  ....

Wednesday 19 December 2012

पहचान


पहचान -
हमें समझ मैं यह नही आता की यह समाज व्यक्ति की पहचान किस रूप मैं   देखकर उसके व्यक्तिगत जीवन का पता चला पता हैं। 
हकीकत में  जो व्यक्ति दीखता हैं वो होता नही हैं . जो होता हैं वो दीखता नही हें ठीक उसी प्रकार जेसे रेगिस्तान मैं चिलमिलाती धुप दूर से ऐसी दिखाई पडती हैं जेसे कोई नदिया नीर या झील हो मगर कोसो दूर से पास आने पर ठीक विपरीत न नदिया न नीर न झील और आगे देखने पर फिर वही नजारा देखने मे  आता हैं उसी तरह व्यक्ति के बनावटी जीवन को देखकर यह पता लगा पाना कठिन हैं की वह क्या हैं '
उसका जीवन बाहरी व् अंदरूनी दोनों ठीक विपरीत होते हैं व्यक्ति जिस समाज मे रहता हैं उस समाज के हिसाब से उसका अपना स्तर बनाये रखने और पारिवारिक प्रस्टभूमि और संस्कारो को ध्यान मे रखते हुए व्यक्ति कितनी ही परेशानियों मे क्यों न  हो वो समाज मे अपने आप को उसी स्तर का दिखाना पसंद करेगा जिसमे समाज मैं उसकी प्रतिष्ठा बनी हुई हैं व्यक्ति कही तो अपने आप को साबित करेगा व्यक्ति विपदाओ से निपट सकता हें संकटों  से जूझ सकता है अपने आप के दुखो से घबरा कर और समय से लड़कर सफल हो सकता हैं पर समाज में एक बार अपना स्तर व पारिवारिक  प्रस्टभूमि को नकार कर जी नहीं सकता क्योकि व्यक्ति हर संघर्शो से अकेले लड़ सकता हैं पर परिवार और समाज से जीत नहीं सकता कहने का मतलब ये की व्यक्ति का दोहरा जीवन बाहरी जीवन व् निजी जीवन अपने आप से व अपनों से वक्त परिवार से व समाज आर्थिक और मानसिक इस सब से  हट कर बाहरी जीवन मैं अपने आप को साबित करता हैं 

Monday 29 October 2012

उत्पीडन घरेलू हिंसा क्या ये कानून सिर्फ महिलाओ के लिए

उत्पीडन घरेलू हिंसा क्या ये कानून सिर्फ महिलाओ के लिए 
उत्पीडन घरेलू हिंसा क्या ये कानून सिर्फ महिलाओ के  लिएही हैं या परिवार मैं रहने वाले हर व्यक्ति के  लिए अगर हैं तो महिलाये ही क्यों घरेलू हिंसा का मुकदमा दायर करती हैं पुरुष क्यों नही या परिवार का वो व्यक्ति जो परिवार के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पीड़ित हैं 
वो क्यों नही अपने आप को न्याय दिला पा रहा हैं और अगर ये कानून सिर्फ महिलाओ के ही लिए हैं तो आखिर क्यों पुरषों के लिए क्यों नही या फिर परिवार के अन्य लोगो के लिए क्यों नही ये जरूरी नहीं के हर महिला पीड़ित हो व हर पुरुष अत्याचारी हो ,
जहा इस देश मैं राम और सीता जेसे आदर्श पति पत्नी हुए।
राम के वनवास जाने पर सीता जो मिथला की राजकुमारी होने के बाद भी अपने पति राम के साथ वन मैं संघर्ष मई जीवन जीना स्वीकार किया 
वही शिव  पार्वती भी आदर्श पति  पत्नी थे पार्वती जी स्वयम राजा हिमवान की पुत्री होने के बावजूद शिव से विवाह के पश्चात अपने पति शिव के तप मैं लीन  रहने  वाले व् सारी  सुख सुविधाओ का आभाव होने पर  दाम्पत्य का  आदर्श हैं   और वही  रिश्ता पूजनीय हैं 
विष्णु व् लक्ष्मी सारे सुख वैभव मगर पत्नी लक्ष्मी देवी विष्णु के चरण दबाये दिखती हैं ये रिश्ता भी सम्मानजनक और पूजनीय हैं 
पर आज ये क्या हो रहा हैं  देखने मैं आता हैं व्यक्ति जरा सी  भी इच्छा पूर्ति नही होने पर वो स्त्री हो या पुरष तानाशाही मारपीट करता हैं 
अबी तक तो महिलाये ही पीड़ित दिखती थी पति या परिवार से मगर अब तो कई महिलाये भी इसी राक्षस  प्रवति की हैं 

राक्षस  प्रवति  की महिलाये भी इस धरती पर निवास कर रही हैं व  अपने पति के साथ मारपिट  हिंसात्मक झगड़ा परिवार के अन्य  सदस्यों के साथ कटु व्यवहार करती हैं लगता हैं की जेसे वो नारी नही नारी के नाम पर कलंक हैं जिस देश की नारिया समर्पण त्याग ममता की मूर्ति कहलाती हो लगता हैं वहा इस रूप मैं कोई अपवाद पैदा हो गया 
ऐसी नारिया सिर्फ  राक्षस वंश की हैं या जिन्होंने नारी जाती का अपमान किया हैं पर हम क्या कर सकते हैं भेष के सामने बीन बजाना सब कुछ बेकार वही कानून यदि  ऐसी नारियो की रक्षा करेगा तो बेचारा पुरुष जो कमाता  हो समाज मैं सम्मान  से रहता हो सारी सुख सुविधा देता हो अगर उस पुरुष  के साथ भी एसा होता हैं तो फिर इसे समाज मैं रहने वाले परिवारों का अंत क्या होगा उन महिलाओ की वजह से हकीकत मैं जो महिलाये  दुखी व  पीड़ित  हैं वो इस कानून के हक के फायदे से वंचित हैं व उनका  जीवन नारकीय हैं क्योंकी वो समाज व् ममता की बेडियो मैं बंदी हुई सिर्फ दुःख सहन करने के आलावा कुछ नही कर सकती 
और उनके मुकदमे सालो तक लम्बित पड़े रहते हैं .

Thursday 18 October 2012

जन संगठन हो राज नीती से परे

 जन संगठन हो राज नीती से परे











आज देश में जो परिस्थितिया है, उनसे निपटने में प्रशासन और राज नेता सभी
असहाय सिध्द हो रहे है
यदि कोई दल सत्ता में है, तो वह अपने सत्ता के अहंकार में जनता की आवाज
को दबाने में नहीं हिचकता
यदि विरोध में है तो वह भी अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए आरोप
प्रत्यारोप में भी उलझा रहता है
और येन केन सत्ता में पहुँचना चाहता है अत समस्या यथावत है समाधान की
संभावना समाप्त होती जा रही है
 
ऐसे में एक ही आशा की किरण है जन संगठन परन्तु इसे भी समाज की सद्भावना
और सहयोग चाहिए
ये दोनों तभी होता है जब जन संगठन को चलाने वाला नेत्रत्व पूर्ण रूप से
निस्वार्थ हो निरभिमानी हो
और अपने लक्ष्य के लिए समर्पित हो ऐसे समर्पित कार्यकर्ता आसमान से नहीं टपकते
उन्हें प्रारम्भ से प्रशिक्षण की जरुरत होती है इस प्रशिक्षण में अनुशासन
का विशेष महत्व है
कई बार कोई जन संगठन अपनी दिशा को बदलता दिखाई देता है कभी -कभी उसके कार्य करता
 
योग्य नेत्रत्व के अभाव में भटक जाते है बड़ा दुःख होता है जब शिखर के
करीब पहुचे लोगो में
व्यक्तिगत अहम् का टकराव प्रारंभ हो जाता है और वह शिखर से वह पतित हो जाता है
और उसका अनुयायी दिग्भ्रमित हो जाता है और इधर उधर छिटक जाता है तब वह सोचता है की
 
हमने जस लक्ष्य को साध रखा था वह संभवत  हम नहीं पा सकेगे इस प्रकार
निराश होकर वह संगठन
अपनी मौत मर जाता है या फिर राज नेताओं की चाल बाजी या परिस्थितियों से
समझौता करके अपनी नियति की बाग़ डौर उन्हें सौप देता है और उस  जन संगठन
की स्थिति आत्म ह्त्या में बदल जाती है इस परिस्थिति को कैसे सम्हाला जाय
इसका विचार आवश्यक है हमारे देश में प्राचीन शास्त्रों में ऐसी स्थिति को
ठीक करने के लिए कुछ उदाहरणों से उपाय स्पष्ट होते है
भगवान् राम के वन गमन के अवसर पर उनका निर्णय कितना सही था वे चाहते तो
दशरथ की बात को अनदेखा करके वन गमन नहीं करते परिस्थितिया भी अनुकूल थी
कैकयी की उपेक्षा करने पर कोई राजनैतिक संकट भी नहीं आता बाकी सब उनके
अनुकूल ही थे कैकयी पुत्र भरत भी अनुकूल ही रहते लेकिन उन्होंने राष्ट्र
की स्थिति पर विचार किया उनसे पूर्व के अवतारी पुरुष भगवान् परशुराम ने
अपने हिसाब से समाज को दिशा दे ही दी थी लेकिन उनके क्षात्र शक्ति के
विरोध और ब्राह्मण शक्ति को सम्मान देने के आवेश में समाज में रावण जैसा
विद्वान ब्राहण द्वारा अनाचार व् आतंक बढ़ने लगा उसका प्रभाव पुरे विश्व 
में बढ़ता जा रहा थ और उसकी छाया विश्वामित्र के आश्रम तक आ चुकी थी राम
ने विश्वामित्र के आश्रम में रह कर जिस स्थिति को देखा था और ताडका
सुबाहु के वध के साथ मारीच को भगा कर वह मिथिला में सीता स्वयंवर में
धनुष भंग के अवसर पर सभी सभी शासको  के साहस और परशुराम से भयभीत होने के
दृश्य को देखा था तब उन्हें अपने कर्तव्य का बोध हुआ और उसी समय उनके
द्वारा परशुराम जी से आगे के काल खंड में अवतारी कार्य को स्वयं निर्वाह करने का निर्णय लिया गया वे समझ गए देश का सामान्य जन दलित है पीड़ित है,
और उसका शोषण होने पर वह चुपचाप रहने लगा है शोषन  कर्ता धर्म और जाती के अहम् में उनका दमन करता है ऋषि मुनि वृन्द भी उनकी उपेक्षा करके अपनी
तपस्या में रत है अन्याय का प्रतिकार करने हेतु उस समाज को खडा करने का साहस कोई नहीं कर पा रहा है यहाँ तक की ऋषि मुनि भी अपने रक्त का शुल्क देकर शांत बैठा है सम्पूर्ण समाज ईश्वर के अवतार की प्रतीक्षा कर रहा है
परशुराम जी की पारी भी पूरी हो चुकी थी इसी कारण राम ने वन गमन किया
मात्र इसलिए की समाज में जन जागरण कर सके उन्होंने सम्पूर्ण राज वैभव को
त्याग कर अपने परिवार सहित गहन वन में वनवासी वेश में प्रवेश किया और
समाज में व्याप्त अशिक्षा असंस्कार व् कुरीति को दूर कर साहस का संचार
किया वहा उनके समक्ष  भी आकर्षण आया शूर्पणखा ने उसके रूप विलास का
प्रलोभन भी दिया पर राम ने उसकी नाक कटवाकर यह सन्देश दिया की वे आकर्षण से प्रभावित नहीं होंगे और बाद में रावण ने छल से सीता हरण किया लेकिन वे निराश नहीं हुए और उसके बाद तो उनकी संगठन शक्ति अधिक वेग से बढ़ी और वानर और वर्शिक जाती के हनुमान सुग्रीव अंगद और जाम्बवत को अपने साथ जोड़ लिया
यह जन संगठन ही था जो राम के लिए अवैतनिक सैनिको के रूप कार्य करने को प्रस्तुत हुए और उन्होंने अपने पराक्रम से समुद्र लांघकर रावण को उसकी लंका में ही जा घेरा उस समय उनके साथ भरत का कोई राज वंश यहाँ तक की
अयोध्या का सहयोग भी नहीं था रावण की शक्ति का समूल नाश करके राम ने अपने लक्ष्य को प्राप्त किया बाद में समाज ने उनको राजा बनाया पर उनका राज्य सुखो के भोग हेतु नहीं था उन्होंने समाज की दैहिक दैविक व् भौतिक
व्याधियो को दूर करके वह राम राज्य के अधिष्ठाता बने उनके जीवन में मात्र समाज हित पर ही दृष्टि थी समाज ने उनको ईश्वरीय अवतार मानना प्रारम्भ कर दिया इन्ही राम का आदर्श मान कर दूसरे उदाहरण के रूप में द्वापर में बल
भद्र हुए है उनके समय में भी राजा स्वेच्छाचारी हो गए थे कंस जरासंध
भोमासुर तथा शिशुपाल दुर्योधन और दुशासन ये सभी समाज को भयभीत कर रहे थे
समाज का शोसन करते थे जनता भयभीत थी नारियो का शील हरण चीर हरण राज सभाओं में होता था तब बल भद्र ने अपने छोटे भाई कृष्ण को राजनीति की राह पर
छोड़ कर स्वयं ने गैर राजनैतिक स्वरूप में अपना स्थान बनाया लेकिन
दुष्टों का संहार दोनों ने मिल कर किया बलभद्र सबसे अधि बलशाली थे
लेकिन उस बल सदुपयोग उन्होंने समाज में जागृति लाने व् लोगो को समाज हित मैं की जाने वाली क्रषि कार्यों 
तथा गोपालन से जोड़ा और समाज को पुरुषार्थी बनाया राम के आदर्श के कारण ही
वे बल भद्र से बलराम बन गये और किसानो  के देवता कहलाये इस देह की धरती
को सिंचित करने हेतु उन्होंने हल का प्रयोग किया युग की मांग भी थी जनसंख्या कम होने पर पहले कन्दमूल फल से काम चलता था आसुरी संसृति के लोगो
ने मांसाहार को  अपना लिया इसलिए बलराम जी ने अन्न तथा दुग्ध उत्पादन कर
सबको शाकाहारी बनने का सन्देश दिया वे सदा राजनीति से दूर ही रहे बड़े भाई होकर भी शासक छोटे भाई कृष्ण को ही बनाया अर्थात राज के वैभव से दूर
रह कर समाज के काम में लगे रहे इसी परम्परा में वर्तमान कल खंड में
माननीय दत्तोपंत जी ठेंगडी ने भारतीय मजदूर संघ, विद्यार्थी परिषद्
,
भारतीय किसान संघ आदि जन संगठनो की स्थापना की इन संगठनो से देश को दिशा मिल रही है जब इनमे सत्ता का आकर्षण नहीं रहेगा यह संगठन सफल रहेगे समाज
को इनसे दिशा मिलेगी राजनीति के ऊपर भी अंकुश रहेगा
उपरोक्त लेख में यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है की कार्य कर्ता के
त्याग शौर्य इन्द्रिय दमन व् धैर्य से ही जन संगठन को अपने लक्ष्य तक पहुचाया जा सकता है मात्र पर दोष दर्शन या सस्ती लोकप्रियता अथवा सुविधाभोगी बन कर समाज को दिशा देने से कोई प्रभाव नहीं पडेगा अभी भी समाज ऐसे कार्यकर्ताओं की प्रतीक्षा में है और यह भारत माता ऐसे आदर्श राम बलराम
और ठेंगडी को पुन प्रस्तुत करने को सक्षम है हमें तो अनुकूल परिस्थिति का निर्माण करना है इस गहन अन्धकार में नवप्रभात का सूर्योदय करना है जिससे
दिग दिगंत आलोकित होगा यह अवतारी कार्य होगा यही कलयुग का अवतार है
                                                       
संघो शक्ति कलोयुगे

                                                                                                           
हरिनारायण शर्मा "निर्भीक "

Monday 24 September 2012

सहनशीलता

सहनशीलता 

सहनशीलता हर  व्यक्ति मे नही होती  वह  तो  सिर्फ देव महान आत्माओ में ही होती हैं जिस तरह भगवान शिव् ने अमृत  त्याग कर विष ही पिया यहा तक की उनके चारो तरफ सर्प बिच्छू कई तरह के जहरीले जीव मोजूद रहें उनके चारो तरफ भूत पिशाच उन्हे घेरे रहते पर शंकर भगवान तप कर के उनका ही कल्याण करते यह एक नीलकंठ ही कर सकता हे जो दूसरो के हित के लिए  विष पी जाये वह शिव् हे।
इसी तरह प्रक्रति से हमे बहूत कुछ सीखने को मिलता हैं। आखिर प्रक्रति हमेशा हमारा पालन पोषण करती हवा पानी नदिया झरने फल फूल अन्न पहाड छाया वृक्ष हरियाली हजारो जीवो का पालन पोषण करती चिडियों का चहचहाना हमें अच्छा लगता है  हरियाली हमारे तनाव् को दूर करती हैं हमारी आँखों को सकून मिलता हैं जब  भी तनाव होता हे तो हम नदि सागर या भगवान के पास बेठ जाते हे पर हम  प्रक्रति को क्या देते हैं ?
हम  प्रक्रति का विनाश करने मे कोई कसर नही छोडते प्रदूषण से प्रकृति का विनाश करते है  प्रक्रति अन्त तक देने का ही काम करती हे आखिर हम मानव् हे,
यह जीवन तो सिर्फ एक बार मिलता हैं हमें कठिनाईयो से घबराना नही चाहिये और जो नही घबराते वह ही शिव भक्त कहलाते है वही  प्रक्रति प्रेमी कहलाते हैं शिव व्  प्रक्रति  दोनो देने का काम करते हैं इसलिये मानव् को इन्ही  का अनुशरण करना चाहिये .
हमे अपने से प्यार करना चाहिये शिव के सहारे माँ के द्वारे  अपने दर्द को त्याग देना चाहिये "

Saturday 22 September 2012

 ढकोसला  या बोझ कहा श्रध्दा ?

हरतालिका तीज का व्रत मान्यता अनुसार सती गौरी शिव जी से विवाह करना चाहती हैं पर उनके पिता राजा दक्ष सती का विवाह शिव जी से नही करवाना चाहते चाहते तब सती गौरी भूख हडताल कर शिव जी से विवाह करने हेतु तपश्या करने वन मैं जाकर शिवजी का जाप करती अन्नजल फल निंद्रा सबकुछ त्याग देना तब जाकर घोर तपश्या के  बाद शिवजी सती गौरा को प्राप्त हुए तभी से ये व्रत  स्त्रिया अपने पति की लम्बी आयु व् सात जन्मो का साथ पाने के लिए इस इस व्रत को करती है।
पर हमने देखा हैं की कई स्त्रिया रात दिन झगड़ा करती रहती है परिवार में अशांत माहौल रखती हैं पति का जीना दुर्भर करती हैं पर फिर यह व्रत करती हैं इसी तरह कई महिलाये पति से परेशान है वह अपने पति के लिए व्रत करती हैं पर पति अपनी जिम्मेदारी पर खरे नही उतरते व् पत्नी को मानशिक  शारीरिक व् आर्थिक रूप से परेशान करते हैं क्या इस तरह व्रत करके हम एक दुसरे को तकलीफ दे या फिर संकल्प ले की इस तरह के व्रत करने के बाद हम खुशिया न दे सके तो कम से कम तकलीफ तो न दे मनुष्य का जीवन एक बार मिलता हैं उसे अच्छी तरह जीना चाहिए न की रिश्तो के भोझ को ढ़ोते ढ़ोते दम घुट जाए  जहाँ एक जन्म निभाना मुश्किल हैं वहा सात जन्म केसे निभा पाएंगे ? इसी जन्म को सार्थक करे " हम शिव पार्वती की पूजा करते हैं पर अनुसरण भी करे  

Sunday 1 April 2012

पड़ाव

पड़ाव 
उम्र के हर पड़ाव मैं ठहराव  क्यों आ जाता हैं उम्र जाने कब हाथ  से इनती निकल गई की पता ही नही चला हर चीज़ अपनी जगह से बदली   नजर आती हैं बस हम अपनी जगह पर खड़े हैं दुनिया हमे बदली नजर आती हैं जिंदगी इतने करीब हो गई पता ही नही चला हमे क्या खोया और क्या पाया यह एहसास तब हुआ जब कुछ बाकी नही रहा इंसान अपने आप को क्यों उलझाये रहता हैं एक पल अपने बारे मैं क्यों नही सोचता. 

आस 
हम गम पीये जाते हैं और  ख़ुशी की आस  करते हैं, हम मरे जाते हैं पर  जिंदगी की आस  करते हैं.
दिल को टूटते हुए हमने देखा हैं फिर भी जिन्दादिल्ली  की बात करते हैं.
काँटों का दर्द सहा  हमने फिर भी दूर से फूलो की आस करते हैं.
अपनों ने ही धुतकारा हैं हमे मगर हम उन्हें अपना  बनाने की बात करते हैं.
भगवान को हमने बहुत पूजा पर दुनिया ने हमे पत्थर बना दिया मगर फिर भी  भगवान से हम दुआ की बात करते हैं.
आसू बहुत बहाए हमने हम मुस्कुराने की हैं बात करते हैं टूट कर बिखर गये हम मगर हम सम्भलने की बात करते .

Wednesday 28 March 2012

वेदना


















वेदना 


हम इतने बेबस हो सकते थे हमे भी नही पता था पत्थरों से सर हमने फोड़ा आखिर आपने हमे कही का नही छोड़ा.
रोता हुआ हमे छोड़ कर मुस्कुराकर चल दिए ए मेरे अनजाने साए हम हरपल साथ तेरा चाहते आप जेसा चाहो मैं रहू वेसे बनके बस इतना चाहती हूँ की  पिया आप रहो मेरे बन के
पर ये क्या आप के चरणों की धुल को हमने सर पर लगा लिया हमने आपको बहुत कुछ मान लिया पर आप ने ही हमे धुल मैं मिला दिया.

Tuesday 27 March 2012

अन्याय

अन्याय 










कुछ समय पहले किरण बेदी का सीरियल चल रहा था 


"आप की कचहरी " किरण बेदी  भारतीय पुलिस सेवा की प्रथम महिला आई पी एस अधिकारी एवं महिलाओ की आदर्श यहाँ  तक की पुरषों को भी लोहा मनवा चुकी एक सशक्त महिला हैं (इनके कार्यकाल मैं केदियो के सुधार हेतु कई कार्यक्रम चलाये गये जिससे कई केदी लाभान्वित हुए)
सच हैं की हर महिला को किरण बेदी की तरह ही बनना चाहिए मगर उस महिला के पीछे सदेव  ऐसे माता पिता का हाथ होना स्वभाविक हैं जो उसे उतम शिक्षा दे, दूसरा अच्छा  पति का जो सहयोग दे.
क्या किरण बेदी के साथ इन्साफ हुआ नही क्योकि पुरुष प्रधान समाज मैं हमेसा हर रूप मैं औरत का अस्तित्व ही मिटाया जाता हैं किरण बेदी का प्रमोशन होना और प्रतिभा प्रतिभा पाटिल का राष्ट्रपति बनना ये दोनों बाते एक ही दिन होनी थी मगर किरन बेदी हर तरह से योग्य होते हुए भी और सीनियर होते हुए भी उनका प्रमोशन नही होना और उनसे जूनियर किसी पुरुष का प्रमोशन हो जाना 
(इस घटना के बाद किरण बेदी ने आपने पद से इस्तीफा दे दिया)
 ये हर महिला के लिए एक दुखद समाचार था दूसरी तरफ श्रीमती प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बनती हैं यह हैं राजनीति अखबार मैं बहुत बड़ी खबर मगर फिर भी नाही तो सरकार के कान पर जू रेंगती हैं और न ही किसी संस्था का विरोध.


ना ही महिलाओ की कोई प्रतिक्रिया देखने मैं आई ये हैं निक्रष्ट  समाज फिर भी जिसके लिए किरण बेदी आज सामाजिक बुराई या संस्था की तरफ से केस ले रही हैं न्याय की कोशिस कर रही हैं उस निक्रष्ट  समाज के लिए जिस समाज ने एक आदर्श महिला को अपने हक से वंचित कर दिया वही समाज किरन बेदी के सामने हाथ फेलाए खड़ा हैं हमे शर्म आना चाहिए इस पुरुष प्रधान देश मैं अगर महिला एक हो जाती अगर महिला राष्ट्रपति इस बारे मैं कुछ सोचती तो शायद हमारी आदर्श किरन बेदी हमारी नई पीडी को और नई पहचान देती मगर हमारी राष्ट्रपति को अपने राष्ट्रपति बनने  की ख़ुशी मैं एक आदर्श महिला संघर्षी महिला का हक दर्द व्  पीड़ा समझ  मैं नही आया वो तो फुल मालाओ मैं इतनी लद गई की बेदी की दर्द पीड़ा को अनदेखा कर दिया यह हैं समाज की व्यवस्था .
. एक महिला का मोन रहना दूसरी महिला पर अत्याचार 
. समाज जिम्मेदार हैं योग्य व्यक्ति को हक नहीं दिलाने  का 
  

Sunday 25 March 2012

मोक्ष



मोक्ष 
अकेले सभी आते हैं अकेले सभी जाते हैं पर सारी जिंदगी अकेले रहता नहीं कोई.
इंसानों के बीच रहतें हुए भी अकेले हैं क्योकि हर व्यक्ति को सिर्फ अपनी ही पड़ी है वो लोग कितने खुशकिस्मत होते हैं जिन्हें हमदर्द मिलता हैं दर्द बटता है या फिर प्यार करता हैं आखिर हमने ऐसा कौनसा गुनाह   किया की हमे कोई समझने को तेयार नही हम कोशिश  करते हैं हम से खता न हो फिर भी खता हो न हो हम सजा भुगतने को तेयार रहतें हैं सिर्फ इस उम्मीद पर की शायद वो इस बात पर हमे अपना समझे पर नहीं चोट फिर हमने खाई किसी को भी नज़र नहीं आई क्योंकी हम अकेले है और अकेले रहेंगे सारी जिंदगी दुनिया रूपी श्मसान मैं आत्मा की तरह भटक रहें हैं कब मोक्ष मिले या अत्रप्त आत्मा को दुबारा जन्म ले और फिर मृत दुनिया मैं ज़ीने की कोशिस करे  

छाले


छाले
दिल मैं दर्द के छाले आखों मैं सूखे हुए आंसू  के सहारे वक्त काटेगें 
होठों पर नकली मुस्कुराहट चेहरे पर द्रढ़ता लिए रह सकते हैं 
कहते हैं न वक्त इंसान को मजबूत बना देता हैं हकीक़त मैं वक्त इंसान को तोड़ भी देता हैं, टूट कर बिखरने से अच्छा हैं सम्भल जाओ लड़खड़ाकर चलने से अच्छा हैं कर्म ( मेहनत) रूपी बैसाखी अपना लो.


मेहनत कर के आदमी धनवान बन सकता हैं शिक्षा पाकर आदमी बुद्धिमान बन सकता हैं पर एक अनमोल चीज़ ऐसी हैं जिसके लिए आदमी अपना सब कुछ खो देता हैं पर फिर भी वो उसे नहीं मिलता वो हैं प्यार और अपनापन.

निराशा से आशा की और



निराशा से आशा की और 
आदमी को आदमी समझा करो जानवर समझ कर दुत्कारा मत करो चाहें वो कोई भी हो स्त्री या पुरुष हें तो इंसान ,इंसान समझ कर बात किया करो.
औरो के लिए नही अपनों के लिए जीने की कोशिस करो बहुत जीलीये औरो के लिए अपने लिए भी जी कर देखो इंसान की ज़िन्दगी इस जहां मैं सिर्फ एक बार मिलती हें इसे मिटने मत दो जब तक हें जिन्दगी कोशिश जीने की करो इस जहाँ में मेहनत कर के अपना स्थान बना सकता हें क्या फर्क पड़ता हें किसी को आप की जरूरत नहीं हें .

जीवन


जीवन बहुमूल्य है उसके लिए जो इसका मूल्य जानता है 
जिन्दगी एक ऐसा चौराहा है
जिसे इंसान जिस तरफ मोड़ना चाहे मोड़ सकता है 
यह उसके ऊपर निर्भर है कि वो कौनसा रास्ता चुने अच्छा या बुरा 
अच्छाई ऊचाइयों  पर  पहुचाती  है 
बुराई इंसान को दलदल में गिराती है  

Saturday 24 March 2012

अंतर



अंतर -


इंसान इतना मजबूर और बेबस आखिर क्यों हो जाता है ? जो चीज मिलना असंभव है उसे पाने की नाकाम हसरत लिए तड़प उठता है अंत तक कोशिश पाने की ही करता है मगर भाग्य में चीज नहीं है वह मिलना बहुत मुश्किल है भाग्य से लड़ते हुए हम बचपन से जवान हो गए आखिर कुछ भी तो नहीं पाया सिवाय अपमान और तिरस्कार के किसे अपना समझे यहाँ कोई अपना नहीं है सब एक और दर्द देने वाले है इस दुनिया में हम जानवर की तरह जी रहे है सिर्फ फर्क इतना है कि जानवर - जानवर का हमदर्द हो जाता है, यहाँ इंसान दिल में खंजर छुपाये दर्द बांटने की बजाये एक और दर्द दे देते है कौन कहता है कि जानवर की तरह नहीं जीना चाहिए क्योंकि हां हमें हकीकत में जानवर की तरह ही जीना चाहिए क्योंकि एक पक्षी अगर मर जाता है तो हजारो पक्षी उसके इर्द -गिर्द जमा हो जाते है एक पशु अगर घायल हो जाता है तो उसके हमदर्द साथी उसे सहलाते है, पुचकारते है यह एक जानवर ही कर सकता है जिसे कोई स्वार्थ नहीं, निःस्वार्थ सेवा इंसान में यह चीज़ कहाँ हर जगह कुछ न कुछ लालच उसेक बावजूद भी ये सब कुछ नहीं मिल पता इस खुबसूरत जहाँ में सबकुछ खुबसूरत है सिर्फ इंसान के सिवाय अगर इंसान लालच, अहम् छोड़ दे इंसान को इंसान समझे उसकी भावनाएँ समझे उसकी मूक भाषा (फेस रीडिंग)  को पहचाने उसको प्यार करे तो सब कुछ खुबसूरत है मगर इन सब के लिए इंसान को जानवर बनना होगा. 

रिश्ते


रिश्ते 
व्यक्ति उम्मीद करता हैं की सामने वाला उसको समझे मगर उसके लिए एक इंसान को दुसरे इंसान की भावना में खो जाना होगा पर यह असंभव तब है 
जब पुरुष सीता जैसे पत्नी चाहे खुद रावण का रोल निभाए क्योंकि सीता जैसी पत्नी के लिए पहले राम बनना होगा, भाई लक्ष्मण-भरत जैसा चाहे खुद बाली बन जाये, भरत-लक्ष्मण जैसे भाई पाने के लिए खुद को राम बनना होगा दोस्त कृष्ण-सुदामा जैसा चाहे मगर इसके लिए खुद को कृष्ण बनना होगा नहीं तो द्रुपत और द्रोणाचार्य की भाति मित्रता का अंत होगा.
अच्छे माता पिता का आशीर्वाद  के लिए आपको श्रवण कुमार बनना होगा वरना कंस की तरह विनाश को प्राप्त हो जाना तय हैं.
बहन देवकी जेसी चाहे और खुद कंस का रोल निभाए, इसके लिए आप को द्रोपती और कृष्ण के रिश्ते को निभाना होगा,

Friday 23 March 2012

माँ का स्नेह




नववर्ष आया संग नवरात्रि व पर्व माँ दुर्गा संग लाया 


यह सच है की हम माँ दुर्गा की पूजा करते हैं अखंड ज्योति भी जलाते हैं, जागरण भी करते हैं
हम सब व्रत करते हैं आखिर हम माँ से क्या मांगते है 
हर व्यक्ति अपनी इच्छाएँ माँ के सामने रखता है और मुझे लगता है माँ सबके सपने साकार करती है देर सवेर पर क्या कोई ऐसा भी है जो सिर्फ निःस्वार्थ माँ की सेवा पूजा करता,  अगर है तब तो बिना मांगे ही माँ सबकुछ दे देती हैं 
मांगने पर तो माँगा वही मिलता कहते है 
       
                "बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न नीर"


सच ही तो है माँ अपने बच्चों की सांसों, धड़कन और आँखों से पहचान लेती हैं फिर क्या जरुरत है माँ से कुछ मांगने की माँ शब्द प्यार, स्नेह और आशीर्वाद से भरा होता है
माँ कभी नहीं चाहती की मेरे बच्चें दुखी हो पर गलती पर सजा तो दे सकती है कुछ समय के लिए मगर माँ का स्नेह कभी ख़त्म नहीं होता
माँ की सेवा, पूजा निःस्वार्थ मन से करें न की लालच से क्योंकि हम खुद इंसान लालची व्यक्ति को बर्दाशत नहीं करते 

नववर्ष प्रतिपदा






नूतन वर्ष नववर्ष खुशियाँ अपार लाया नवरात्रि  
नवदुर्गा माँ आशीर्वाद संग लायी आज माँ अपने बच्चों के घर आई 
खुशियाँ, उत्साह अपार हमारे द्वार लायी नतमस्तक चरणवंदन है 
हे माँ तेरे बच्चों की तरफ से तुझे अभिनंदन है 
माँ हम क्या माँगे तुझसे हम तो तुच्छ प्राणी है 
दो यह वरदान माँ गोद तुम्हारी चाहिये
सर पर हो हाथ तुम्हारा बस हमें हमेशा माँ तुम्हारा साथ चाहिये  

Thursday 22 March 2012

काँटो भरा जीवन





हर किसी के जीवन में फूल नहीं खिलते, जीवन ही बेरंग हो तो रंग नहीं मिलते 
माना कि हम मोहताज नहीं प्यार के पर क्यों दिल तड़प उठता है, पर क्यों बैचेनी होती है उसे पाने की जिसे पाना नामुमकिन है 


काँटो भरा जीवन मेरा पथरीली रांहे हैं इंसान भला क्या जाने इसे पाने का सुख या दुःख सब साथ छोड़ देते हैं वक़्त बदल जाने पर यही तो सच्चा साथी हैं जो हर पल साथ रहता है वो है दर्द दर्द दर्द 

नारी का अस्तित्व



हे नारी तेरा रूप अस्तित्व कहाँ खो गया तेरा सपना कहीं दफ्न हो गया


(नारी) तूने तो सबको किनारे लगाया था तुझे मझधार में कौन छोड़ गया
वो हँसता-मुस्कुराता चेहरा, चंचल निगाहें कहाँ खो गयी 
क्यों बेजान चेहरा पत्थर सी बन गयी हो 


हे नारी तेरा रूप अस्तित्व कहाँ खो गया तेरा सपना कहीं दफ्न हो गया


जिसको तूने सहारा दिया वो तुझे तोड़ कर चला गया 
तेरी अग्निपरीक्षा बहुत हो चुकी क्यों घबरा जाती हो,
हिम्मत हार जाती हो और क्यों आंशु बहती हो 


कोई शख्श तुम्हारे आंशु नहीं पोंछेगा इस तरह तो तुम मिट जाओगी और तुम्हारी पहचान ख़त्म हो जाएगी 


अपना रास्ता खुद बनाओ मंजिल तुम्हे नज़र आयगे इस मृत दुनिया को मत देखो जिसने तुम्हें छला हैं, जिसने तुम्हें तोड़ा है 


तुम माँ मरियम बन कर दिखाओ, सीता और अनुसुइया बन कर दिखाओ 
वक़्त आने पर झांसी की रानी दुर्गा बन कर दिखाओ 


हे नारी तेरा रूप अस्तित्व कहाँ खो गया तेरा सपना कहीं दफ्न हो गया











ज्योति

 


लाख दिये के तले अँधेरा हो मगर औरों को रोशन कर देता है 
असीम ज्योति है उसके पास मगर खुद अंधियारे में रहता है 

जब दिये कि जीवन ज्योति बुझ जाती है 
तो वो ही उन्हीं दुनिया वालों के लिए महत्वहीन हो जाता है 

और तो और उसका साया भी उसका साथ छोड़ देता है 

मगर हमें प्रकाशवान दिये से अपनी तुलना करनी चाहिए 
न कि उस दिये को महत्वहीन समझ कर नज़रअंदाज़ करना चाहिए 

महत्वहीन हो जाने के बाद भी उसकी महत्ता खत्म नहीं हो जाती