Saturday 19 October 2013

नारी अभिस्राप है


नारी अभिस्राप है इस सृष्टी पर जीवन उसका बेहाल है इस सृष्टी पर 
       रित यही है इस    दुनिया की दे दो समन्दर तुम दर्द और आंसुओ का 

अखियाँ फिर भी अपनेपन की खोज में ढूंड रही है अपनों को अपने में 
       भीगी पलके बता रही है तुम मान जाओ यू न सताओ आखिर क्या कसूर हे मेरा ?

श्राप भगवान ने नारी तुझे बनाया नारी ने सोचा था पूजा होगी सम्मान मिलेगा 
       पर पता नही था के यहाँ दर्द और आंसुओ का समन्दर मिलेगा 

हे भगवान अगले जन्मो में पत्थर बना देना नीर बना देना पर नारी बना के आखों मैं नीर ना देना  
   

Friday 5 July 2013

विश्वास हैं हमें






व्यक्ति के जीवन में चाहे कितनी भी तकलीफे भी क्यों न आये अगर वो हिम्मत से काम ले  विपरीत परिस्थितियों में टूटता नही और जीवन को भगवान के भरोसे छोड़  देता हें  और अपने कर्म किये जाता हैं  और विपरीत परिस्थितियों में  नहीं हारना चाहिए । हमें हमारा हर काम  की कोशिश करना चाहिए । यह विश्वास हैं हमें बघ्वान हमारा साथ जरुर देगा । 

आशा



आशा  यानी उम्मीद होना के शायद सब कुछ अच्छा होगा पर हर बार परिणाम विपरीत आता हैं 
कर्म रूपी आशा की सीमा समाप्त नही होती 
हर असफलता के बाद फिर सफलता की आशा व्यक्ति हर बार कोशिश करता रहता हें  तो उसे सफलता मिलती हैं 
क्योकि बार  बार प्रयत्न करने से सफलता तो  मिलेगी कर्म रूपी आशा मैं व्यक्ति को अपनी मेहनत के मुताबिक परिणाम का पता रहता हैं। 
इसके ठीक विपरित व्यहवारिक रूपी आशा यहाँ पर व्यक्ति परस्पर आपस मैं व्यवहारिक परिवारक समाजिक रिश्ते नाते ये सब व्यक्ति के आपसी व्यवहार से चलते हैं 

व्यवहार में  त्याग कर्तव्य प्यार तब तो व्यवहारिक रूपी आशा में  आप सफल हो अगर इन सब में  से  किसी भी एक में  कमी आजाती हें  तो आप असफल व्यक्ति कहलायेगे क्योकि फिर आप आशा नही कर सकते की किसी भी एक व्यवहार की कमी आने पर परिणाम क्या आएगा 

जीवन में आंसू सबसे बड़ा मित्र हैं



आंसू व्यक्ति के जीवन में  उसका सबसे बड़ा मित्र होता हैं आंसू क्योकि जब भी कभी व्यक्ति कभी आधिक खुश होता हैं तो ख़ुशी के मारे आंसू ही आते हैं सो पहला मित्र आंसू ही होता हैं और जब व्यक्ति बहुत दुखी परेशान होता हैं तो आंसू ही आते हैं तो सुख और दुःख दोनों का साथी आंसू ही हैं 

आंसू बह जाने से व्यक्ति हल्का हो जाता हैं किसी भी परिस्थित में व्यक्ति के जीवन काल मैं ख़ुशी या गम हो सरे मित्र परिवार बाद में  मिलते हैं सबसे पहले आंसू आप के साथ होते हैं आंसू बहने से व्यक्ति का दिल हल्का हो जाता हें  इसलिए कहते हें आंसू अगर आये तो बह जाने दो उन्हें मत रोको व्यक्ति के जीवन में अगर आंसू नही होते तो ख़ुशी के मारे दिल फट जाता व्यक्ति के जीवन में अगर आंसू नही होते तो गम के मारे दिल फट जाता 
जीवन में  आंसू सबसे बड़ा मित्र हैं 

मेरा जीवन कोर कागज़ कोर ही रह गया





मेरा जीवन कोर कागज़ कोर ही रह गया पथरीली आँखों मैं अब तो सिर्फ सवाल रह गया फूलो मैं खुशबू होती हैं पर मेरा फूलो के पास से गुजरना ना गवार हो गया  मेरा जीवन कोर कागज़ कोर ही रह गया 

पथरीली राहों पर कडकती धूप  में  नंगे पैर तेज़ रफ्तार में  हम चल रहें पाँव पर पड़े चाले गवाह हमारे अकेले काँटों भरी राहों के दिल में दर्द आखों में आंसू लिए हम चल रहें थे पर उन आंसुओ  का बहना भी अब दुस्वार हो गया मेरा जीवन कोर कागज़ कोर ही रह गया 

शुन्य



शुन्य यानी  अस्तित्वहीन  किसी भी रूप मैं शुन्य का कोई अस्तित्व नही होता सिर्फ खाली  खाली जिसका होने या न होने का कोई मतलब नही ठीक यही बात इंसान पर भी लागू होती हैं कर्मशील व्यक्ति को हर कोई पूछता हैं उसका उदाहरन दिया जाता हैं जो वक्त के साथ चले न की वक्त को गवाए जो वक्त को गवाता हैं वो शून्य की तरह हो जाता हैं पर वही शून्य के मायने बदल जाते हैं जब वही शून्य पीछे लगता हैं तो वह दस बन जाता हैं दस के पीछे लग कर वह सौ और इशी तरह वो किसी भी अंक के पीछे लग कर उसके मूल्य मैं आकस्मिक वर्धि कर देता हैं 

Thursday 4 July 2013

मनुष्य या मशीन







तनाव भरी जिन्दगी आज मनुष्य जिन्दगी कम जीता हें मशीन की तरह चलता अधिक हैं 
व्यक्ति के पास न तो अपने लिए समय हें नाही अपनों के लिए  व्यक्ति की अपनी एक मज़बूरी होती हैं 
ज़िम्मेदारी निभाते निभाते वो वक्त से पहले बूढ़ा हो जाता हें 
आखिर क्यों अपने लिए वक्त नही निकाल पता ?

इस महंगाई और आधुनिकता में व्यक्ति की आवश्यकता बढ़ गयी उसके साथ जुड़े लोगो की आवश्यकता बढ़ गयी सामाजिक स्तर बढ़ गया और इस होड़ में व्यक्ति मशीन बन गया पर मशीन को भी वक्त वक्त पर सर्विस की जरूरत होती हैं उसे भी समय समय पर तेल पानी देना पड़ता हैं 

पर इंसान को तनाव के अलावा सौगात स्वरूप सौ बिमारीया और मिल जाती हैं 
वह अपनों के लिए करता करता अपनों से भी दूर हो जाता और अपने शरीर से भी दूर हो जाता हैं 
बाद में आसपास सहारा सिर्फ मेडीटेसन का हैं अकेलापन और वक्त से पहले आप बूढ़े हो जाते हैं और जिन्दगी कुछ ही दुरी पर खड़े खड़े आप को निहारती रहती हैं 

पुराने जमाने में व्यक्ति ब्रह्ममुहर्त मैं उठना पूजापाढ कसरत करना फिर सुबह की चाय अपनों के साथ बेढकर करना शाम का भोजन अपनों के साथ बेढकर करना इससे सभी दिनभर के अपने अनुभव बाटते और सही गलत का निर्णय सभी मिलकर लेते 
सभी एक दुसरे का सहारा होते आज बदलते युग मैं व्यक्ति सिर्फ अपने आपस से जुडा होता हैं अपनों से नही क्योकि वो मशीन बन गया हैं 

अपनी आवश्यकताओ को सीमित  करे अपनों को महत्व दे वक्त को महत्व दे 

दुःख दूर मत करो हैं







दुःख दूर मत करो हैं नाथ मेरे दो शक्ति घोर दुःख सहने की इस जीवन में संघर्ष बहुत हें दो शक्ति मुझे इससे लड़ने की l 
धन दौलत और लालच की इस दुनिया में कहा जाऊ प्रभू नैनों में नीर दिल में  दर्द हैं दो शक्ति इसे छिपाने की  l

दुःख दूर मत करो हैं नाथ मेरे दो शक्ति घोर दुःख सहने  की ll 
इस दूनिया में में कहा जाऊ या फिर पास बुलालो प्रभू अपने या दे दो मुक्ति मुझे इस जीवन से l 
दुःख दूर मत करो हैं नाथ मेरे दो शक्ति घोर दुःख सहने की ll
 इस जीवन में संघर्ष बहुत हें दो शक्ति मुझे इससे लड़ने की सब कुछ छूट जाये भले जीवन से पर  आप ना छुटो जीवन से ll



Friday 28 June 2013

शून्य


 शून्य  या हम कहे शान्त हो चुके हैं मन हमारा कभी अशांत था पर अब वो भी शान्त हैं 
शान्त मतलब दुसरे शब्दों में  मर जाना या संवेदनहीन हो जाना क्या हम संवेदनहीन हो चुके हैं 
मेरा कल मेरा आज सब शान्त  जब में  अशान्त थी तब सब परेशान थे पर आज सब खुश हें की में   संवेदनहीन हूँ 
दिल सो गया मन मर गया आंखे पथरीली हो गयी कदम थम गये खोज समाप्त जेसे की अंत हो गया एक पीडी  का पर मुझे मेरा जीवन सार्थक नही हो पाया पर हाँ अभी आशा की एक किरण बाकि हैं बार बार मेरी शक्तिरूपी माँ मुझे जगाती हैं मेरे सोये मन में  हलचल मचाती हैं
मुझे मेरे कर्तव्य मेरी श्रधा भावनाओ का एहसास कराती हैं कर्तव्यनिष्ठा के प्रति खरी उतरने की बहुत कोशिस की पर मैं सफल नही हो पाई आंसू दर्द संघर्ष जीवन मैं तोहफे के रूप मैं मिले कोशिस खुशिया पाने की हजार की पर दुख पाया नाकामी मिली 

पर हाँ दुर्गा रूपी शक्ति मुझे बार बार जगाती  हैं मेरे लडखडाते पेरो को राह दिखाती हैं   हर वक्त हिम्मत होसला बड़ाती हें अपने आश पाश देखना कही शून्य या शान्त हो तो जगाने की कोशिस करना किसी को नवजीवन देकर हो सकता हैं आप का जीवन परमार्थ के काम मैं लग जाये कहते हैं ठहरा पानी सडान्ध मारता हें  इसलिए पानी को बहते रहना चाहिए उसी तरह व्यक्ति को भी क्रियाशील रहना चाहिए 

आप अपने उपर राक्षसव्रतियो को हावी न होने दे क्योकि वे आप के काम में  बाधा डालेंगे माँ रूपी देव शक्तियों को अपनाओ रास्ता अपने आप बन जायेगा 

मैं हूँ नदिया नारी प्रक्रति 

Wednesday 26 June 2013

केक्ट्स का पोधा

















हाँ में  वो केक्ट्स का पोधा हूँ जो लोगो को दूर से देखने में अच्छा लगता हैं 

मेरे उपर कांटे लगे हें  जो भी हाथ लगता हें  उसे दर्द दे दे ता हूँ पर फिर भी क्यों लोग अपनी बगिया में  मुझे रखते हें 
दर्द सहते हें  पर मूझे  पानी देते हें  गुड़ाई करते खाद देते हैं अगर उन्हें दर्द बर्दाश्त नही तो मुझे उखाड़ फेको क्यों दर्द सहते हैं और क्यों उसे भी जिंदा रखने की कोशिस करते हैं वो तो पहले ही मर चूका हैं क्योकि उसे कोई  प्यार  विश्वास नही करता उसे दर्द हैं ये तुम्हें पता नही वह रोता हैं सिसकता हैं उसकी आंहे तुम्हे दिखाई नही देती तुम्हे सिर्फ कांटे दिखाए देते हैं हाँ में केक्ट्स का पोधा हूँ 

मोह



 अग्नि मे तप कर लोहा भी सोना बन  जाता है पर हम वो बदनसीब हे की अग्नि में  तपने के बावजूद सोना तो छोड़ो कथीर भी नही बन पाए 

यह हमारी कमी हें की हम तप तप कर जल गये पर दुनिया को हमारा जलना भी रास न आया क्योकि उन्हें जलना देखना स्वीकार 
नही 
वो राख देखना  चाहते हैं जो निर्जीव  हो हवा के झोके से उड़ जाये और  उसका अस्तित्व खत्म हो जाये क्यों शायद हम  नासूर हें अपनों के लिए यह हमारा अँधा मोह हैं जो  हमे ही ले डूबा हमे अपनों ने ही धुत्कार तिरस्कार अपमान आंसू 
आग मैं हम जल रहें हैं और मोह किये जा रहें हैं पर हमारे बारे में  कोई नही सोचता सभी अपनी शर्तो पर रखना चाहते हैं अगर उनकी 
शर्तो  के मुताबिक रहो तो ठीक वरना आपसे रिश्ता तोड़ देते हैं क्योकि उन्हें हमारी  आवश्यकता नही हैं 

Saturday 16 February 2013

काश आंसुओ के सहारे जिन्दगी बीत गई होती


काश आंसुओ के सहारे जिन्दगी बीत गई होती


काश आंसुओ के सहारे जिन्दगी बीत गई होती हम यू ना भटक गये होते पता नही दिल के किस कौने में मरघट समाया हुआ लाश मेरी यू  ही जलती रही दिल तडपता रहा 
क्यों जिन्दगी में सुनापन सा छाया हुआ लाख मुस्कुराने पर भी आंसुओ में डूबा हुआ जो हमराज मिला बेवफा मिला अपना पन पाने के लिए इस कद्र तडप गये ये तो ख्वाब भी नही था हम नही मानते हमे कोई खता की कसूर तुम्हारा हैं इश्वर की तुमने हमारे साए से हमे दूर किया कसूर तुम्हारा हैं माँ की तुमने हम से आंचल छुड़ा लिया काश आंसुओ के सहारे जिन्दगी बीत गयी होती 
लाख सुविधाए हो लाख स्वतंत्रता हो मगर हाँ ये सच हैं की संसार मे हर किसी को प्यार विश्वास नही मिलता मेहनत कर के इंसान महान बन सकता हें शिक्षा पाकर इंसान बुद्धिमान बन सकता हें मगर विश्वास और प्यार कुछ भी करने पर नही मिलता इश्वर तूने ये केसी बेमोल चीज़ दी जिसे पाने के लिए इंसान अपनी जान भी दे सकता हैं।

डर लगता हें




डर लगता हें 



हमे तो अपनों से भी डर लगता हें  बेगानों से भी डर लगता हें हर सख्स से

 हमे डर लगता हें कौन अपना कौन पराया हर चीज से हमे डर लगता हें।

हमे आजकल अपने आप से भी डर लगता हैं।

आत्मविश्वास




आत्मविश्वास 




इंसान को किसी के सहारे की जरूरत नही होती उसका सहारा उसका

 अपना आत्मबल उसका विश्वास और उसकी मेहनत

पर न जाने क्यों इंसान सहारा ढूंढता रहता हैं।

और वो सहारा सिर्फ उसके लिए एक छलावा या एक धोका हें जो उसे

 परेशानियों के अलावा कुछ नही दे सकता


Thursday 14 February 2013

टूटता तारा







टूटता तारा 

मैं वो आंसमा से टुटा तारा हूँ जो आसमान से टूट जाने के बाद अस्तित्व हीन हो जाता हैं जब तक आसंमा मे रहता हें तब तक वह तारा तारामंडल की गिनती में आता हें जेसे की तारा टूटता हें तो बहुत से लोग टूटते तारे को देखकर मन्नत मांगते हें बस उसके बाद वो तारा अस्तित्व हीन हो जाता हैं 
व्यक्ति भी परिवार से जुड़ा रहें तब तक ठीक हैं परिवार व समाज से अलग होने के बाद वो व्यक्ति अस्तित्व हीन हो जाता हैं और फिर नारी अगर परिवार और समाज से अलग रहती तो स्थित और भी गम्भीर हो जाती चाहे वो नारी संघर्षशील हो अपनों की सताई हो पति से पीड़ित हो अगर उस नारी ने अपना स्थान अलग बनाया भी तो भी समाज उसे हीन द्रष्टि से देखता हैं पुरुष प्रधान समाज में पतिपत्नी को साथ देखा जाता हें वही उनका सम्मान बड जाता हें भले ही नारी ने अपने बच्चो का भरन पोषण कर उन्हें योग्य बनाया भी तो क्या ? क्या फर्क पड़ता हें ये तो औरत की जिम्मेदारी हैं पर क्या पुरुष की नही ?

पुरुष को कभी भी घ्रणा की द्रष्टि से नही देखा जाता दोष नारी में ही ढूंढ़ते हें ये समाज ये परिवार सोच कर  दिल भर आता हें पर क्या टूटते तारे न जमीं  पर गिरते हें ना आंसमा में रहते हें वो तो सिर्फ लुप्त हों जाते हैं। 



* बसंत के मायने  * 











इस बसंत के मौसम में  चारो और गोदावरी गुलमोहर सरसों के कई तरह के फुल खिलते महकते हैं चारो और अपनी सुन्दरता बिखेरते हैं।

एक हर भरा केसरिया सा उर्जावान खुशियों भरा त्योहारों भरा प्यार भरा ये बसंत अपने साथ लिए आता हें

 व्यक्ति के व्यक्तित्व का लगता हैं सोच बदल जाती सरे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं शायद इसीलिए बसंत

 कहते हैं बहार बनकर आता हैं वही दूसरी तरफ बसंत के मायने बदल जाते हैं खिलते फूलो का बिखर जाना

 बिखर के टूट जाना तेज हवा और तूफानी हवा के झोकों से पेड़ो का उजड़ जाना पेड़ों पर लगे पत्तें डलिया फुल

 सबका टूट के धरती पर बिखर जाना चारो तरफ तेज आंधी पतझड़ से तितर बितर होते वृक्ष उजड़ा चमन टूटते दिल एक दर्द का एहसास करा जाता हैं।

नकारात्मक सोच हो जाती हैं बसंत के मायने बदल जाते हैं बहार उसके लिए जहा जीवन में खुशिया हो पतझड़ उसके लिए जहा जीवन वीरान हो।*

Sunday 10 February 2013

समय का फेर





समय का फेर 




वक्त जब बुरा होता हैं तो कहते हैं आप का साया भी आपका साथ छोड़ देता हैं सच ही तो है परिस्थितिया बिलकुल विपरीत हो जाती हैं 
अपने बेगाने हो जाते हैं व्यक्ति का बात करने का तरीका बदल जाता हैं व्यक्ति आप से दूरिया बना लेता हैं या फिर आप का मजाक बना देता हैं यदि आप से कोई छोटा हैं तो आपके सम्मान मैं कमी करदेता हैं यहा तक आप को उपदेश भी देता है चाहें वो खुद किसी योग्य न हो व्यगं करे बिना नही रहता वक्त जब बुरा होता हैं तो अच्छे अच्छो की पहचान हो जाती हैं 
कौन अपना कौन पराया कौन कितना साथ दे सकता हैं कौन मझदार मैं छोड़ सकता हैं कौन आप को खून के आंसू रुला सकता हैं ये सारी बाते बुरे वक्त पर निर्भर करती  हैं 
इंसान का वक्त जब बुरा होता हैं तो चारो तरफ से असफलता सामने आती हैं 
शायद भगवान भी परीक्षा लेते हैं कुछ लोग बुरे वक्त से घबराकर जीवन त्याग देते हैं कुछ लोग घर त्याग देते हैं कुछ लोग पागल हो जाते हैं कुछ बिमार हो जाते हैं और कुछ लोग हिम्मत से वक्त के साथ लड़ने की तेयारी करते हैं पर बुरा वक्त तो बुरा ही हैं क्योकि आदमी लड़ते लड़ते थक जाता हैं बुरा वक्त नही थकता आदमी को चाहिए की अच्छे वक्त का इंतज़ार करे निराश न हो चाहें वर्षो ही क्यों न लग जाये समय बदल ता हैं इश्वर की शक्ति को पहचाने उस पर भरोसा करे हो सकता हैं की हम सबसे ज्यादा दुखी हो पर ढूंढने पर पता चलेगा की आप से भी कोई ज्यादा दुखी हैं उसको देखकर आप को दुःख से लड़ने की शक्ति मिलेगी किसी का वक्त जब बुरा आता हैं तो किसी के लिए बिमारी लेकर आता हैं किसी के लिए पारिवारिक कलह कोई आर्थिक तंगी से परेशान कोई अपमान जनक स्थति मैं रहता हैं तो किसी को भगवान ये सारी तकलीफ एक साथ दे देता हैं 
इन परिस्थितियों मैं वो ही व्यक्ति सफल होता हैं जो ईश्वर की शक्ति को अपनी ताकत बनाये हमारा पूरा विशवास हैं की तकलीफों मैं ही हिम्मत मिलेगी और बुरे वक्त मैं जीना आसान हो जायेगा कहते हैं कर्म ही कामधेनु प्रार्थन ही पारसमणी हैं। 

( जो आप के भाग्य मैं नही हैं वो दुनिया की कोई भी शक्ति आप को दे नही शक्ति और जो आपके भाग्य मैं हैं वो दुनिया की कोई भी शक्ति आप से छीन नही सकती ईश्वरीय शक्ति सम्भव को असम्भव व् असम्भव को सम्भव बना सकती हैं ) 

Friday 8 February 2013

महत्व




महत्व 



रिश्ते कई तरह के होते हैं कई रिश्ते खून के कई रिश्ते दूध के कई रिश्ते सामाजिक रीतिरिवाजो मैं बंधे रिश्ते दोस्ती के रिश्ते कई ऐसे होते हें हैं जिन्हें नाम देना मुश्किल ही नही नामुमकिन हैं पर सफल रिश्ते वही हैं जो रिश्तो का महत्व समझे व रिश्ते निभाए वरना कई रिश्ते टूट चुके हैं कई रिश्ते टूटने की कगार पर हैं कई रिश्ते खिच रहे हैं कई रिश्ते बहुत अच्छी तरह से निभा रहें हैं और कई ऐसे रिश्ते जिनका नाम ही नही पर आपको हिम्मत व सम्बल दिलाते रहते हैं सही रिश्ता वही जो आपके हर सुख दुःख मैं साथ दे वरना इसे रिश्तेदारो को सिर्फ रिस्तो को कातिल समझे जो रिश्ता दर्द का बन जाये उससे दुरी बनाये रखे न की ढोए सही रिश्तो मैं त्याग होता हैं प्यार होता हैं अपना पन होता हैं हर सुख दुःख का साथ होता हैं वक्त आने पर आप को अच्छा बुरा समझाये न की समस्या बडाये 

समझोता






समझोता -

कहते हैं व्यक्ति को समय से समझोता कर लेना चाहिए क्या हमे सचमुच समझोता कर लेना चाहिए ? शायद सभी की अपनी अलग अलग सोच होती है।
समय से समझोता करना भी एक स्थिति पर निर्भर करता हैं की किन परिस्थितियों मे आदमी समय से समझोता करता हैं किन पर नही -
1. व्यक्ति अपना मान सम्मान स्वाभिमान ताक पर रखकर समय से समझोता कर ले शायद ठीक नही होगा।
2. व्यक्ति अपना चरित्र ताक पर रखकर समझोता कर ले क्या ठीक होगा ?
3. व्यक्ति को कोई बार बार क्रूरता दिखाए अपमानित करे  ठेस पहुचाये और थोड़ी देर बाद हस कर आप से कहे चलो ठीक झगड़ा खत्म क्या व्यक्ति को इन परिस्थितियों से समझोता करना चाहिए अगर आप समझोता करते है तो एक शर्त पर की सामने वाला व्यक्ति ये गलती दोबारा नही दोहराए  अगर वह ये गलती दोहराता रहता और आप समझोता करते हैं तो आप का जीवन इस समझोते के आधार पर सामने वाला नारकीय बना देगा 
4. व्यक्ति को समय से समझोता वही करना चाहिए जहा व्यक्ति का विकास नही रुके व्यक्ति के जीवन मैं उर्जा संचार बना रहें व्यक्ति अपने जीवन को जी सके नाकि घुट घुट कर जिए जहा पर आप समझोता कर रहें हैं क्या वहा पर व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास हो न की अडचने पैदा हो शायद इसलिए कहते हैं समझोते पर जिन्दगी नही चलती खिचती हैं .

Thursday 7 February 2013

हमे चोट मंजूर हैं






आप आप न रहें ये हमने कभी सोचा नही था हकीकत से हम क्यों घबराते हैं आप हमारे हो ही नही इस बात से हम क्यों टकराते हैं 
पत्थरो को हमने पूजा हमने कभी ये क्यों नही सोचा की हमे पत्थर क्या दे सकते हैं न कोई वरदान न कोई प्यार हा वो हमे अभिस्राप जरुर दे सकते हैं क्योकि पत्थरो से सर फोडोगे तो चोट तो हमे ही आयेगी 

प्रिय हमे चोट मंजूर हैं अगर एक पल के लिए आप हमारे बारे मे सोचो 

गमों के सागर मे डूबी हुई हूँ में








गमों के सागर मे डूबी हुई हूँ में 


अपने पन की खोज मैं खोई हुई हूँ में 

छलकपट की इस दुनिया में कहा प्यार की खुसबू 

जहा भी में जाऊं एक भेद सा में पाऊं 

दिल में कितने छाले किसे अपना समझ कर दिखाऊ 

जो हे अपना वो भी तो परायो सा लगता हें 

मेरे मुस्कुराते चहेरे को खुशी का समंदर समझता हैं।

दिखावा





दिखावा

 

आखिर समाज का स्तर क्या है सिर्फ दिखावा ? हर चीज़ का दिखावा रहने का दिखावा खाने का दिखावा प्यार का दिखावा रिश्ते का दिखावा आखिर इस दिखावे के चक्कर मैं इंसान अकेला पड गया क्योकि उसके पास सिर्फ दिखावे के अलावा कुछ नही बचा .

व्यक्ति सिर्फ दिखावा करते करते ही मर जाता हैं और अपनी असल जिन्दगी जी नही पता इंसान को हकीकत से वाकिफ होना चाहिए 
हमारे संस्कार हमारा प्यार हमारा एक दुसरे के प्रति त्याग इसे ही कहते हैं जिन्दगी जिना जहा अपनों को खुश देखकर दुगना खुशी होना अपने स्वार्थ को त्याग कर कितनी ख़ुशी मिलती हैं मगर आज के समाज की स्थति इतनी विकट हो चुकी है की एक इंसान दुसरे इंसान को रोककर उपलब्धी प्राप्त करता हैं अपनी खुशी के लिए दुसरो का हर तरह से शोषण करता हैं. 

Tuesday 5 February 2013

मे मुक्त गगन का पक्षी हूँ




मे मुक्त गगन का पक्षी हूँ 



मे मुक्त गगन का पक्षी हु बंधन मुझको स्वीकार नही 

ये नीड़ निशा का आश्रय हैं पिंजरे से मुझको प्यार नही
 
स्वछन्द समीर लहरों मे मे बहती रहती हूँ नील गगन के निचे मे ये गीत गुनगुनाया करती हूँ
 
मे मुक्त गगन का पक्षी हु बंधन मुझको स्वीकार नही
 
सांसो पर मेरी बेडीया लगता हे कसी हुई ये न जानू मे मेरी हर सांस दबी हुई दिल का हाल किसे बताऊ मेरा दर्द न जाने कोई
 
मे मुक्त गगन का पक्षी हु बंधन मुझको स्वीकार नही
 
हर बार मेरे पर काट दिए उड़ने की नाकाम कोशिशो पर यु जी रहें हैं घुट घुट कर अपनों का कोई सरोकार नही
 
मे मुक्त गगन का पक्षी हु बंधन मुझको स्वीकार नही 

उस पिंजरे से भी मुझको प्यार था पर बदले मैं मुझको अपमान तिरस्कार स्वीकार नही 

मे मुक्त गगन का पक्षी हु बंधन मुझको स्वीकार नही
 
मेरे दिल के हर टुकड़े को कई बार छलनी कर दिया मेरे जख्मो का कोई उपचार नही
 
मे मुक्त गगन का पक्षी हु बंधन मुझको स्वीकार नही
 
अविश्वास की डोरी मैं बंधी मेरी जिन्दगी मेरे सच  से किसी को कोई सरोकार नही हर दर्द मैं अकेले रहना हैं यु आंसू बहाते रहना हैं इस धरा पर कोई अपना कहने वाला नहीं
 
मे मुक्त गगन का पक्षी हु बंधन मुझको स्वीकार नही ये नीड  निशा का आश्रय हैं पिंजरे से मुझको प्यार नही 

वक्त

वक्त



वक्त को न थाम सके हम वक्त हाथ से यु निकल गया देखते रह गये हम हर सुबह के बाद शाम सूरज यु ढल गया
वक्त को न थाम सके हम वक्त हाथ से यु निकल गया 
सपने बस सपने बन कर रह गये सपनों को साकार करना रह गया
वक्त को न थाम सके हम वक्त हाथ से यु निकल गया
कब बचपन बिता कब जवानी आई कब बुढ़ापा शुरु हो गया राहें भटक गये मंजिले बदल गयी पर हम खड़े सही वक्त की ताक मैं हमारा वक्त निकल गया पल बिता घड़ी बीती कई पहर बित गये हम लड़खडाते कदमो से वक्त को पकड़ने के लिए वक्त के पीछे भाग रहें पर वक्त की तेज रफ्तार ने हमारे लड़खडाते कदमो का साथ छोड़ दिया
वक्त को न थाम सके हम वक्त हाथ से यु निकल गया .

Friday 18 January 2013

टूटी - बैशाखी




टूटी - बैशाखी


हम उन टूटी हुई बैशाखी की सहारे चलने की कोशिश कर रहे हैं जो मंजिल तक हमे नही पंहुचा पाएगी 

हम हर बार उन्ही को सुधारने की कोशिस करते रहते पर वो हमारा एक कदम भी साथ नही दे पाती
 
हर मुश्किल के वक्त वो हमारा साथ छोड़ देती हम उन टूटी बैसाखी के सहारे चलते चलते खुद टूट कर रह गये 

हाँ मे पतझड़ का पत्ता हूँ



हाँ मे पतझड़ का पत्ता हूँ





हाँ मे पतझड़ का पत्ता हूँ जो तेज हवा के झोके से क्षतविक्षत  हो जाता हूँ 


ये बसंत का मौसम कहते हे बहार बनकर आता हें पर साथ ही तेज हवा का वेग लेकर आता हैं
तुफानो से हम घबराते नही पर हम तो अपनों से हार जाते हैं हाँ मे वो पतझड़ का पत्ता हूँ जो तेज हवा के झोके से क्षतविक्षत  हो जाता हूँ 

बहुत कोशिस की मैंने बचने की कभी किसी ओड  मे  छुपा कभी किसी ठोर मे क्योकि ये बसंत  का मौसम तेज हवा का वेग लेकर आता हैं 

ये वेग दर्द का एहसास करा जाता हे जेसे वृक्ष वीरान हो जाते हैं पत्ते डाली से टूट जाते हैं अपनों का साथ छुट जाता जमी पर पड़ा पत्ता निसहाये हो जाता लाख कोशिस की तुफानो से टकराने की पर हर कोशिश   नाकाम रही
साथ छुटा संग अपनों का विश्वासटूटा घर टूटा परिवार टूटा दर्द के मारे दिल टूटा हाँ मे पतझड़ का पत्ता हूँ जो तेज हवा के झोके से क्षतविक्षत  हो जाता हूँ 

तलाश

तलाश 



 गंमो के सागर मैं डूबी हुई हूँ मे ,अपने पन की खोज मे खोई हुई हूँ मे  
                                        
दौलत की इस दुनिया मे कहा प्यार की खुसबू जहा भी मे  जाऊं एक भेद सा मे पाऊं 

दिल मे  कितने छाले किसे मे अपना समझ कर दिखाउ जो हे अपना वो भी तो परायो सा लगता हैं
                                               
मेरे मुस्कुराते चेहरे को एक ख़ुशी का समुंदर समझता हैं

Tuesday 15 January 2013

खोज


खोज 




आंसू भरी आँखे मेरी हम किसे बताये कोई तो हो अपना जिसे हम अपना समझ पाए कोई नही इस दुनिया मैं तुम्हारा जिसे तुम हमदर्द समझो यह पर इंन्सान  नही शैतान रहते हैं तुम आंसू पोछने के लिए किसे ढूंड रहें हो तुम्हे आंसू के बदले तोड़ कर या मिटा कर चले जायेंगे कोई हमसफर नही हैं तुम्हारा नही कोई दोस्त जो हैं तुम्हारा हकीकत मैं वो भी तुमसे अनजान हैं हर बार चोट पहुचाई हर बार ठोकर तुमने खाई फिर भी सम्भल नही पाई इस दुनिया मैं यही होता हैं घुट घुट कर जियो या मर जाओ आंसू कोई तुम्हारे नहीं पोंछेगा या फिर तुम उस मुकाम पर पहुच जाओ जहा पर दर्द भी तुम्हारे पास आने से घबराए व्यक्ति को अपना विकास स्वयम करना पड़ता हैं अपना स्थान भी स्वयम बनाना पड़ता हैं।



खोखला समाज 


  मे एक  औरत हूँ इस पुरुष प्रधान समाज मे जहा देवी की मूर्ति पूजी जाती है धरती रूपी माँ की पूजा की जाती हैं गंगा के रूप मैं माँ की पूजा की जाती हैं वन देवी की पूजा की जाती हैं मगर हर बार उसी देवी के साथ अत्याचार होता हैं चाहे वो किसी भी रूप मैं क्यों न हो हर बार बली इसी स्त्री रूप की ही दी जाती हैं।
और हमारा समाज और पुरुष बड़ी सहजता से इन सब को स्वीकारता हैं और खुश होता हे  और पुर्ष्तव पर अभिमान करता हैं। जिस मूर्ति रूपी देवी की इतनी पूजा की जाती हैं पुरुष उसी देवी के सामने हाथ जोड़ कर पैसा उन्नति खुशिया सब कुछ मांगता हैं। मगर आश्चर्य तब होता हैं की वो उसी के घर की नारी को मारना पीटना और मानसिक यातनाये यानी हर तरह से शोषण करता हैं। जरूरी नही की घर मे ही  हो उसका बाहर भी शोषण होता हैं। ये समाज व पुरुष जिस धरती रूपी माँ की पूजा करते हैं उसी का दिल  चिर कर खेती करते हैं। व धरती रूपी माँ समाज व जीवो का सबका पेट भरती  हैं मगर ये समाज धरती को क्या देता हैं शोषण के अलावा कुछ नही जिस गंगा जल रूपी माँ के बिना जीवन अधुरा ही नही खत्म हैं उसी जल को गंदा करना व्यर्थ करना जिस माँ के अमरत्व के बिना हम जीवित नही रह सकते उसी अमरत्व को ज़हर देता हैं ये समाज  प्रदूषित करता हैं ये समाज वन देवी जो हमे हवा पानी पेड़ छाया औषधी संसाधन सबकुछ मिलता हैं उसी देवी का खात्मा  कर देता हैं कहने का तात्पर्य हैं की पंचतत्व से बनी ये स्रष्टि सभी मैं नारीत्व मोजूद हैं। मगर इसी नारी का शोषण अत्याचार दुराचार हर रूप रंग मैं किया जाता हैं

Thursday 10 January 2013

टूटते हए को तोड़ते हैं लोग


टूटते हए को तोड़ते हैं लोग बिखरे हुए को बिखरने को मजबूर करते हैं लोग

सच कहते हैं उगते सूरज को दुनिया प्रणाम करती हैं अपना रास्ता खुद बनाओ दुनिया आपके पीछे हैं।

आज का समाज साथ उसी का  स्वीकारता है  जो सक्षम हैं उन्नत हैं वरना रोने वाले को रुलाते हैं बेसहारा की बैसाखी तोड़ देते हैं।

मनुष्य वो प्राणी हैं जो अपने आप मैं एक उपलब्धी हैं पर क्या करे आज का मनुष्य जानवर से भी ज्यादा लाचार हैं क्योकि वो अपना आत्मविश्वास खो चूका हैं उसे आपने आप से ज्यादा अपने आस पास की  समाजिक विकलांगता पर भरोसा हैं अगर वो अपनी शक्ति पहचाने तो समाज का सर्वोतम व्यक्ति हो सकता हैं। 

शायद मुझे ऐसा लगता हैं की हर रिश्ते मैं विराम होता हैं।


शायद मुझे ऐसा लगता हैं की हर रिश्ते मैं विराम होता हैं। वरना 

जहा प्यार हैं वह नफरत का साया क्यों ? जहा दिल हैं वहां दर्द क्यों ? जहा सबकुछ हैं वहा फिर  तन्हाई क्यों  जहा प्यार हैं वहा कमी ?क्यों जहा खुशिया हैं वहां आंसू क्यों ?


शायद मुझे ऐसा लगता हैं की हर रिश्ते मैं विराम होता हैं।
वरना जहाँ दवा हैं वहां दर्द क्यों ? जहा सकून की नींद हैं वहां बेचेनी क्यों ? 

जहाँ रात सपनों मैं गुजर जाती हो वहां सिर्फ सकून खोजती आँखे  और  
करवटे क्यों ?

शायद मुझे ऐसा लगता हैं की हर रिश्ते मैं विराम होता हैं।
  
पर वो गाना क्यों क्योकि मैं देख सकता हूँ सब कुछ होते हुए नही मैं नही  देख सकता तुझको रोते हुए पर हर किसी के साथ ऐसा नही होता जहाँ चाहने वालो का सम्मान होता हैं फिर क्यों अपमानित होना पड़ता हैं ?
जहाँ किसी के दर्द  दिल तडप उठता हैं वहां पर क्यों  निश्चिन्ता आ जाती हैं ? 

Tuesday 1 January 2013

 हां मैं भारत की नारी हूँ 



गम पीती हूँ दर्द सहती हूँ अपनों के लिए जीती हूँ।  
हां  मैं नारी हूँ  हां मैं ममता से भरी हूँ समर्पण मेरा भाव हैं त्याग मेरा जीवन हैं हां मैं भारत की की  नारी हूँ  - हां  बदले मैं मुझे थोडा  मान सम्मान चाहिए बस दे दो  मुझे अपनों का सहारा जीवन तर जाये मेरा हां  मैं भारत की वो नारी हूँ।


हा अगर नारी के रूप मैं कोई अपवाद मिल जाये तो तुम् मुझे दोष न देना क्योकि वो नारी नही नारी के रूप मैं कुल नासनी हैं संस्कारहीन हैं। 
नारी तो आदर्श की मूर्ति होती हैं समर्पण की देवी होती हैं ममता की मूरत होती हैं प्यार का सागर होती हैं अभावों मैं हस कर जीना जानती हैं।
जानती हैं परिवार को तोडती नही जोडती हैं खुद अपनी इच्छाओ को त्याग कर सबका ध्यान रखती हैं तभी तो वो माँ कहलाती हैं बहन और पत्नी कहलाती हैं।
वरना संस्कारहीन नारी वह तो मर्गत्र्श्ना की भाती हैं वह नारी अशांति फेलाने वाली नारी, नारी नही निशाचरनी कहलाती हैं।
हां मैं भारत की नारी हूँ।
यहाँ सीता हुई अनुसुइया हुई यहाँ झाँसी की रानी  अहिल्या हुई भक्ति की देवी मीरा हुई पन्नाधाय सी निष्ठावान हुई।
हां मैं भारत की नारी हूँ यहा माँ दुर्गा की छवि हुई 
हां मैं भारत की नारी हुई।