इंसान इतना मजबूर और बेबस आखिर क्यों हो जाता है ? जो चीज मिलना असंभव है उसे पाने की नाकाम हसरत लिए तड़प उठता है अंत तक कोशिश पाने की ही करता है मगर भाग्य में चीज नहीं है वह मिलना बहुत मुश्किल है भाग्य से लड़ते हुए हम बचपन से जवान हो गए आखिर कुछ भी तो नहीं पाया सिवाय अपमान और तिरस्कार के किसे अपना समझे यहाँ कोई अपना नहीं है सब एक और दर्द देने वाले है इस दुनिया में हम जानवर की तरह जी रहे है सिर्फ फर्क इतना है कि जानवर - जानवर का हमदर्द हो जाता है, यहाँ इंसान दिल में खंजर छुपाये दर्द बांटने की बजाये एक और दर्द दे देते है कौन कहता है कि जानवर की तरह नहीं जीना चाहिए क्योंकि हां हमें हकीकत में जानवर की तरह ही जीना चाहिए क्योंकि एक पक्षी अगर मर जाता है तो हजारो पक्षी उसके इर्द -गिर्द जमा हो जाते है एक पशु अगर घायल हो जाता है तो उसके हमदर्द साथी उसे सहलाते है, पुचकारते है यह एक जानवर ही कर सकता है जिसे कोई स्वार्थ नहीं, निःस्वार्थ सेवा इंसान में यह चीज़ कहाँ हर जगह कुछ न कुछ लालच उसेक बावजूद भी ये सब कुछ नहीं मिल पता इस खुबसूरत जहाँ में सबकुछ खुबसूरत है सिर्फ इंसान के सिवाय अगर इंसान लालच, अहम् छोड़ दे इंसान को इंसान समझे उसकी भावनाएँ समझे उसकी मूक भाषा (फेस रीडिंग) को पहचाने उसको प्यार करे तो सब कुछ खुबसूरत है मगर इन सब के लिए इंसान को जानवर बनना होगा.
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