Sunday, 25 March 2012

निराशा से आशा की और



निराशा से आशा की और 
आदमी को आदमी समझा करो जानवर समझ कर दुत्कारा मत करो चाहें वो कोई भी हो स्त्री या पुरुष हें तो इंसान ,इंसान समझ कर बात किया करो.
औरो के लिए नही अपनों के लिए जीने की कोशिस करो बहुत जीलीये औरो के लिए अपने लिए भी जी कर देखो इंसान की ज़िन्दगी इस जहां मैं सिर्फ एक बार मिलती हें इसे मिटने मत दो जब तक हें जिन्दगी कोशिश जीने की करो इस जहाँ में मेहनत कर के अपना स्थान बना सकता हें क्या फर्क पड़ता हें किसी को आप की जरूरत नहीं हें .

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