Friday, 18 January 2013

हाँ मे पतझड़ का पत्ता हूँ



हाँ मे पतझड़ का पत्ता हूँ





हाँ मे पतझड़ का पत्ता हूँ जो तेज हवा के झोके से क्षतविक्षत  हो जाता हूँ 


ये बसंत का मौसम कहते हे बहार बनकर आता हें पर साथ ही तेज हवा का वेग लेकर आता हैं
तुफानो से हम घबराते नही पर हम तो अपनों से हार जाते हैं हाँ मे वो पतझड़ का पत्ता हूँ जो तेज हवा के झोके से क्षतविक्षत  हो जाता हूँ 

बहुत कोशिस की मैंने बचने की कभी किसी ओड  मे  छुपा कभी किसी ठोर मे क्योकि ये बसंत  का मौसम तेज हवा का वेग लेकर आता हैं 

ये वेग दर्द का एहसास करा जाता हे जेसे वृक्ष वीरान हो जाते हैं पत्ते डाली से टूट जाते हैं अपनों का साथ छुट जाता जमी पर पड़ा पत्ता निसहाये हो जाता लाख कोशिस की तुफानो से टकराने की पर हर कोशिश   नाकाम रही
साथ छुटा संग अपनों का विश्वासटूटा घर टूटा परिवार टूटा दर्द के मारे दिल टूटा हाँ मे पतझड़ का पत्ता हूँ जो तेज हवा के झोके से क्षतविक्षत  हो जाता हूँ 

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