Tuesday, 15 January 2013




खोखला समाज 


  मे एक  औरत हूँ इस पुरुष प्रधान समाज मे जहा देवी की मूर्ति पूजी जाती है धरती रूपी माँ की पूजा की जाती हैं गंगा के रूप मैं माँ की पूजा की जाती हैं वन देवी की पूजा की जाती हैं मगर हर बार उसी देवी के साथ अत्याचार होता हैं चाहे वो किसी भी रूप मैं क्यों न हो हर बार बली इसी स्त्री रूप की ही दी जाती हैं।
और हमारा समाज और पुरुष बड़ी सहजता से इन सब को स्वीकारता हैं और खुश होता हे  और पुर्ष्तव पर अभिमान करता हैं। जिस मूर्ति रूपी देवी की इतनी पूजा की जाती हैं पुरुष उसी देवी के सामने हाथ जोड़ कर पैसा उन्नति खुशिया सब कुछ मांगता हैं। मगर आश्चर्य तब होता हैं की वो उसी के घर की नारी को मारना पीटना और मानसिक यातनाये यानी हर तरह से शोषण करता हैं। जरूरी नही की घर मे ही  हो उसका बाहर भी शोषण होता हैं। ये समाज व पुरुष जिस धरती रूपी माँ की पूजा करते हैं उसी का दिल  चिर कर खेती करते हैं। व धरती रूपी माँ समाज व जीवो का सबका पेट भरती  हैं मगर ये समाज धरती को क्या देता हैं शोषण के अलावा कुछ नही जिस गंगा जल रूपी माँ के बिना जीवन अधुरा ही नही खत्म हैं उसी जल को गंदा करना व्यर्थ करना जिस माँ के अमरत्व के बिना हम जीवित नही रह सकते उसी अमरत्व को ज़हर देता हैं ये समाज  प्रदूषित करता हैं ये समाज वन देवी जो हमे हवा पानी पेड़ छाया औषधी संसाधन सबकुछ मिलता हैं उसी देवी का खात्मा  कर देता हैं कहने का तात्पर्य हैं की पंचतत्व से बनी ये स्रष्टि सभी मैं नारीत्व मोजूद हैं। मगर इसी नारी का शोषण अत्याचार दुराचार हर रूप रंग मैं किया जाता हैं

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