टूटते हए को तोड़ते हैं लोग बिखरे हुए को बिखरने को मजबूर करते हैं लोग
सच कहते हैं उगते सूरज को दुनिया प्रणाम करती हैं अपना रास्ता खुद बनाओ दुनिया आपके पीछे हैं।
आज का समाज साथ उसी का स्वीकारता है जो सक्षम हैं उन्नत हैं वरना रोने वाले को रुलाते हैं बेसहारा की बैसाखी तोड़ देते हैं।
मनुष्य वो प्राणी हैं जो अपने आप मैं एक उपलब्धी हैं पर क्या करे आज का मनुष्य जानवर से भी ज्यादा लाचार हैं क्योकि वो अपना आत्मविश्वास खो चूका हैं उसे आपने आप से ज्यादा अपने आस पास की समाजिक विकलांगता पर भरोसा हैं अगर वो अपनी शक्ति पहचाने तो समाज का सर्वोतम व्यक्ति हो सकता हैं।
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