Friday, 5 July 2013

मेरा जीवन कोर कागज़ कोर ही रह गया





मेरा जीवन कोर कागज़ कोर ही रह गया पथरीली आँखों मैं अब तो सिर्फ सवाल रह गया फूलो मैं खुशबू होती हैं पर मेरा फूलो के पास से गुजरना ना गवार हो गया  मेरा जीवन कोर कागज़ कोर ही रह गया 

पथरीली राहों पर कडकती धूप  में  नंगे पैर तेज़ रफ्तार में  हम चल रहें पाँव पर पड़े चाले गवाह हमारे अकेले काँटों भरी राहों के दिल में दर्द आखों में आंसू लिए हम चल रहें थे पर उन आंसुओ  का बहना भी अब दुस्वार हो गया मेरा जीवन कोर कागज़ कोर ही रह गया 

1 comment:

  1. kaagaj yadi koraa ho to ibaarat koi si bhi likhi jaa sakati hai
    kore kaagaj par vichaaro aur sanskaaro ke liye paryaapt sthaan hotaa hai

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