तनाव भरी जिन्दगी आज मनुष्य जिन्दगी कम जीता हें मशीन की तरह चलता अधिक हैं
व्यक्ति के पास न तो अपने लिए समय हें नाही अपनों के लिए व्यक्ति की अपनी एक मज़बूरी होती हैं
ज़िम्मेदारी निभाते निभाते वो वक्त से पहले बूढ़ा हो जाता हें
आखिर क्यों अपने लिए वक्त नही निकाल पता ?
इस महंगाई और आधुनिकता में व्यक्ति की आवश्यकता बढ़ गयी उसके साथ जुड़े लोगो की आवश्यकता बढ़ गयी सामाजिक स्तर बढ़ गया और इस होड़ में व्यक्ति मशीन बन गया पर मशीन को भी वक्त वक्त पर सर्विस की जरूरत होती हैं उसे भी समय समय पर तेल पानी देना पड़ता हैं
पर इंसान को तनाव के अलावा सौगात स्वरूप सौ बिमारीया और मिल जाती हैं
वह अपनों के लिए करता करता अपनों से भी दूर हो जाता और अपने शरीर से भी दूर हो जाता हैं
बाद में आसपास सहारा सिर्फ मेडीटेसन का हैं अकेलापन और वक्त से पहले आप बूढ़े हो जाते हैं और जिन्दगी कुछ ही दुरी पर खड़े खड़े आप को निहारती रहती हैं
पुराने जमाने में व्यक्ति ब्रह्ममुहर्त मैं उठना पूजापाढ कसरत करना फिर सुबह की चाय अपनों के साथ बेढकर करना शाम का भोजन अपनों के साथ बेढकर करना इससे सभी दिनभर के अपने अनुभव बाटते और सही गलत का निर्णय सभी मिलकर लेते
सभी एक दुसरे का सहारा होते आज बदलते युग मैं व्यक्ति सिर्फ अपने आपस से जुडा होता हैं अपनों से नही क्योकि वो मशीन बन गया हैं
अपनी आवश्यकताओ को सीमित करे अपनों को महत्व दे वक्त को महत्व दे
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