व्यक्ति के जीवन में चाहे कितनी भी तकलीफे भी क्यों न आये अगर वो हिम्मत से काम ले विपरीत परिस्थितियों में टूटता नही और जीवन को भगवान के भरोसे छोड़ देता हें और अपने कर्म किये जाता हैं और विपरीत परिस्थितियों में नहीं हारना चाहिए । हमें हमारा हर काम की कोशिश करना चाहिए । यह विश्वास हैं हमें बघ्वान हमारा साथ जरुर देगा ।
Friday, 5 July 2013
आशा
आशा यानी उम्मीद होना के शायद सब कुछ अच्छा होगा पर हर बार परिणाम विपरीत आता हैं
कर्म रूपी आशा की सीमा समाप्त नही होती
हर असफलता के बाद फिर सफलता की आशा व्यक्ति हर बार कोशिश करता रहता हें तो उसे सफलता मिलती हैं
क्योकि बार बार प्रयत्न करने से सफलता तो मिलेगी कर्म रूपी आशा मैं व्यक्ति को अपनी मेहनत के मुताबिक परिणाम का पता रहता हैं।
इसके ठीक विपरित व्यहवारिक रूपी आशा यहाँ पर व्यक्ति परस्पर आपस मैं व्यवहारिक परिवारक समाजिक रिश्ते नाते ये सब व्यक्ति के आपसी व्यवहार से चलते हैं
व्यवहार में त्याग कर्तव्य प्यार तब तो व्यवहारिक रूपी आशा में आप सफल हो अगर इन सब में से किसी भी एक में कमी आजाती हें तो आप असफल व्यक्ति कहलायेगे क्योकि फिर आप आशा नही कर सकते की किसी भी एक व्यवहार की कमी आने पर परिणाम क्या आएगा
जीवन में आंसू सबसे बड़ा मित्र हैं
आंसू व्यक्ति के जीवन में उसका सबसे बड़ा मित्र होता हैं आंसू क्योकि जब भी कभी व्यक्ति कभी आधिक खुश होता हैं तो ख़ुशी के मारे आंसू ही आते हैं सो पहला मित्र आंसू ही होता हैं और जब व्यक्ति बहुत दुखी परेशान होता हैं तो आंसू ही आते हैं तो सुख और दुःख दोनों का साथी आंसू ही हैं
आंसू बह जाने से व्यक्ति हल्का हो जाता हैं किसी भी परिस्थित में व्यक्ति के जीवन काल मैं ख़ुशी या गम हो सरे मित्र परिवार बाद में मिलते हैं सबसे पहले आंसू आप के साथ होते हैं आंसू बहने से व्यक्ति का दिल हल्का हो जाता हें इसलिए कहते हें आंसू अगर आये तो बह जाने दो उन्हें मत रोको व्यक्ति के जीवन में अगर आंसू नही होते तो ख़ुशी के मारे दिल फट जाता व्यक्ति के जीवन में अगर आंसू नही होते तो गम के मारे दिल फट जाता
जीवन में आंसू सबसे बड़ा मित्र हैं
मेरा जीवन कोर कागज़ कोर ही रह गया
पथरीली राहों पर कडकती धूप में नंगे पैर तेज़ रफ्तार में हम चल रहें पाँव पर पड़े चाले गवाह हमारे अकेले काँटों भरी राहों के दिल में दर्द आखों में आंसू लिए हम चल रहें थे पर उन आंसुओ का बहना भी अब दुस्वार हो गया मेरा जीवन कोर कागज़ कोर ही रह गया
शुन्य
Thursday, 4 July 2013
मनुष्य या मशीन
तनाव भरी जिन्दगी आज मनुष्य जिन्दगी कम जीता हें मशीन की तरह चलता अधिक हैं
व्यक्ति के पास न तो अपने लिए समय हें नाही अपनों के लिए व्यक्ति की अपनी एक मज़बूरी होती हैं
ज़िम्मेदारी निभाते निभाते वो वक्त से पहले बूढ़ा हो जाता हें
आखिर क्यों अपने लिए वक्त नही निकाल पता ?
इस महंगाई और आधुनिकता में व्यक्ति की आवश्यकता बढ़ गयी उसके साथ जुड़े लोगो की आवश्यकता बढ़ गयी सामाजिक स्तर बढ़ गया और इस होड़ में व्यक्ति मशीन बन गया पर मशीन को भी वक्त वक्त पर सर्विस की जरूरत होती हैं उसे भी समय समय पर तेल पानी देना पड़ता हैं
पर इंसान को तनाव के अलावा सौगात स्वरूप सौ बिमारीया और मिल जाती हैं
वह अपनों के लिए करता करता अपनों से भी दूर हो जाता और अपने शरीर से भी दूर हो जाता हैं
बाद में आसपास सहारा सिर्फ मेडीटेसन का हैं अकेलापन और वक्त से पहले आप बूढ़े हो जाते हैं और जिन्दगी कुछ ही दुरी पर खड़े खड़े आप को निहारती रहती हैं
पुराने जमाने में व्यक्ति ब्रह्ममुहर्त मैं उठना पूजापाढ कसरत करना फिर सुबह की चाय अपनों के साथ बेढकर करना शाम का भोजन अपनों के साथ बेढकर करना इससे सभी दिनभर के अपने अनुभव बाटते और सही गलत का निर्णय सभी मिलकर लेते
सभी एक दुसरे का सहारा होते आज बदलते युग मैं व्यक्ति सिर्फ अपने आपस से जुडा होता हैं अपनों से नही क्योकि वो मशीन बन गया हैं
अपनी आवश्यकताओ को सीमित करे अपनों को महत्व दे वक्त को महत्व दे
दुःख दूर मत करो हैं
दुःख दूर मत करो हैं नाथ मेरे दो शक्ति घोर दुःख सहने की इस जीवन में संघर्ष बहुत हें दो शक्ति मुझे इससे लड़ने की l
धन दौलत और लालच की इस दुनिया में कहा जाऊ प्रभू नैनों में नीर दिल में दर्द हैं दो शक्ति इसे छिपाने की l
दुःख दूर मत करो हैं नाथ मेरे दो शक्ति घोर दुःख सहने की ll
इस दूनिया में में कहा जाऊ या फिर पास बुलालो प्रभू अपने या दे दो मुक्ति मुझे इस जीवन से l
दुःख दूर मत करो हैं नाथ मेरे दो शक्ति घोर दुःख सहने की ll
इस जीवन में संघर्ष बहुत हें दो शक्ति मुझे इससे लड़ने की सब कुछ छूट जाये भले जीवन से पर आप ना छुटो जीवन से ll
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