जीवन का आखरी सफर
लडखडाते कदमो को सम्भल कर चलते हमने देखा हैं धुंधली आँखों से अपनों का इंतज़ार करते देखा हैं।
याद उनको वो पल आता जब कभी वो जंवा थे दौड़ कर नन्ने नन्ने कदमो से चलते अपनी आँखों के तारो को ऊँगली थामे मन्दिर दर्शन करने ले जाते कभी टॉफी दिलाते कभी दूध जलेबी कभी मिठाई खिलाते पर ये क्या आज उनका इन्तजार करते हमने उन आँखों को देखा हैं.
थकी हुई आँखों से वो रौशनी ढूंड रहें हैं लडखडाते कदमो से वो सहारा ढूंड रहें हैं अपनों का सहारा मत ढूढीये वो टूट जायेगा अपने आप का सहारा ढूढीये तो वक्त बदल जायेगा क्योकि तारो को टूटते हमने देखा हैं लडखडाते कदमो को सम्भल कर चलते हमने देखा हैं वक्त बदल जाता हैं मोसम बदल जाता हैं पर कहते हैं खून के रिश्ते नही बदल ते पर हमने रिश्तो को बदलते देखा हैं चेहरे पर झुरिया लिए अपनों का इंतज़ार आंसा भरी आँखों को बहेते हमने देखा हैं.
बेबस होकर जीवन के आंखरी पलो को कांटते हमने देखा हैं अपनों का इंतज़ार करते हमने देखा हैं।
लडखडाते कदमो को सम्भल कर चलते हमने देखा हैं धुंधली आँखों से अपनों का इंतज़ार करते देखा हैं।
याद उनको वो पल आता जब कभी वो जंवा थे दौड़ कर नन्ने नन्ने कदमो से चलते अपनी आँखों के तारो को ऊँगली थामे मन्दिर दर्शन करने ले जाते कभी टॉफी दिलाते कभी दूध जलेबी कभी मिठाई खिलाते पर ये क्या आज उनका इन्तजार करते हमने उन आँखों को देखा हैं.
थकी हुई आँखों से वो रौशनी ढूंड रहें हैं लडखडाते कदमो से वो सहारा ढूंड रहें हैं अपनों का सहारा मत ढूढीये वो टूट जायेगा अपने आप का सहारा ढूढीये तो वक्त बदल जायेगा क्योकि तारो को टूटते हमने देखा हैं लडखडाते कदमो को सम्भल कर चलते हमने देखा हैं वक्त बदल जाता हैं मोसम बदल जाता हैं पर कहते हैं खून के रिश्ते नही बदल ते पर हमने रिश्तो को बदलते देखा हैं चेहरे पर झुरिया लिए अपनों का इंतज़ार आंसा भरी आँखों को बहेते हमने देखा हैं.
बेबस होकर जीवन के आंखरी पलो को कांटते हमने देखा हैं अपनों का इंतज़ार करते हमने देखा हैं।
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ReplyDeleteजीवन का आखरी सफर लेख बहुत मार्मिक हैं। लेख पड कर ह्रदय भावुक हो उठा
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