नारी अभिस्राप है इस सृष्टी पर जीवन उसका बेहाल है इस सृष्टी पर
रित यही है इस दुनिया की दे दो समन्दर तुम दर्द और आंसुओ का
अखियाँ फिर भी अपनेपन की खोज में ढूंड रही है अपनों को अपने में
भीगी पलके बता रही है तुम मान जाओ यू न सताओ आखिर क्या कसूर हे मेरा ?
श्राप भगवान ने नारी तुझे बनाया नारी ने सोचा था पूजा होगी सम्मान मिलेगा
पर पता नही था के यहाँ दर्द और आंसुओ का समन्दर मिलेगा
हे भगवान अगले जन्मो में पत्थर बना देना नीर बना देना पर नारी बना के आखों मैं नीर ना देना
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