Friday, 28 June 2013

शून्य


 शून्य  या हम कहे शान्त हो चुके हैं मन हमारा कभी अशांत था पर अब वो भी शान्त हैं 
शान्त मतलब दुसरे शब्दों में  मर जाना या संवेदनहीन हो जाना क्या हम संवेदनहीन हो चुके हैं 
मेरा कल मेरा आज सब शान्त  जब में  अशान्त थी तब सब परेशान थे पर आज सब खुश हें की में   संवेदनहीन हूँ 
दिल सो गया मन मर गया आंखे पथरीली हो गयी कदम थम गये खोज समाप्त जेसे की अंत हो गया एक पीडी  का पर मुझे मेरा जीवन सार्थक नही हो पाया पर हाँ अभी आशा की एक किरण बाकि हैं बार बार मेरी शक्तिरूपी माँ मुझे जगाती हैं मेरे सोये मन में  हलचल मचाती हैं
मुझे मेरे कर्तव्य मेरी श्रधा भावनाओ का एहसास कराती हैं कर्तव्यनिष्ठा के प्रति खरी उतरने की बहुत कोशिस की पर मैं सफल नही हो पाई आंसू दर्द संघर्ष जीवन मैं तोहफे के रूप मैं मिले कोशिस खुशिया पाने की हजार की पर दुख पाया नाकामी मिली 

पर हाँ दुर्गा रूपी शक्ति मुझे बार बार जगाती  हैं मेरे लडखडाते पेरो को राह दिखाती हैं   हर वक्त हिम्मत होसला बड़ाती हें अपने आश पाश देखना कही शून्य या शान्त हो तो जगाने की कोशिस करना किसी को नवजीवन देकर हो सकता हैं आप का जीवन परमार्थ के काम मैं लग जाये कहते हैं ठहरा पानी सडान्ध मारता हें  इसलिए पानी को बहते रहना चाहिए उसी तरह व्यक्ति को भी क्रियाशील रहना चाहिए 

आप अपने उपर राक्षसव्रतियो को हावी न होने दे क्योकि वे आप के काम में  बाधा डालेंगे माँ रूपी देव शक्तियों को अपनाओ रास्ता अपने आप बन जायेगा 

मैं हूँ नदिया नारी प्रक्रति 

Wednesday, 26 June 2013

केक्ट्स का पोधा

















हाँ में  वो केक्ट्स का पोधा हूँ जो लोगो को दूर से देखने में अच्छा लगता हैं 

मेरे उपर कांटे लगे हें  जो भी हाथ लगता हें  उसे दर्द दे दे ता हूँ पर फिर भी क्यों लोग अपनी बगिया में  मुझे रखते हें 
दर्द सहते हें  पर मूझे  पानी देते हें  गुड़ाई करते खाद देते हैं अगर उन्हें दर्द बर्दाश्त नही तो मुझे उखाड़ फेको क्यों दर्द सहते हैं और क्यों उसे भी जिंदा रखने की कोशिस करते हैं वो तो पहले ही मर चूका हैं क्योकि उसे कोई  प्यार  विश्वास नही करता उसे दर्द हैं ये तुम्हें पता नही वह रोता हैं सिसकता हैं उसकी आंहे तुम्हे दिखाई नही देती तुम्हे सिर्फ कांटे दिखाए देते हैं हाँ में केक्ट्स का पोधा हूँ 

मोह



 अग्नि मे तप कर लोहा भी सोना बन  जाता है पर हम वो बदनसीब हे की अग्नि में  तपने के बावजूद सोना तो छोड़ो कथीर भी नही बन पाए 

यह हमारी कमी हें की हम तप तप कर जल गये पर दुनिया को हमारा जलना भी रास न आया क्योकि उन्हें जलना देखना स्वीकार 
नही 
वो राख देखना  चाहते हैं जो निर्जीव  हो हवा के झोके से उड़ जाये और  उसका अस्तित्व खत्म हो जाये क्यों शायद हम  नासूर हें अपनों के लिए यह हमारा अँधा मोह हैं जो  हमे ही ले डूबा हमे अपनों ने ही धुत्कार तिरस्कार अपमान आंसू 
आग मैं हम जल रहें हैं और मोह किये जा रहें हैं पर हमारे बारे में  कोई नही सोचता सभी अपनी शर्तो पर रखना चाहते हैं अगर उनकी 
शर्तो  के मुताबिक रहो तो ठीक वरना आपसे रिश्ता तोड़ देते हैं क्योकि उन्हें हमारी  आवश्यकता नही हैं